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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 261 होता है, वह दूसरे को आत्मवत् समझकर अनुकम्पा का भाव तो/रखता है, किन्तु ममता से मुक्त होने के कारण वह दूसरे के दुःख से तनावग्रस्त नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति अपने समुचित मार्गदर्शन से उस दुःखी व्यक्ति को उसके दुःख या तनाव के कारणों को समझाकर उनसे मुक्ति का मार्ग बता देता है। आस्तिक्य - आस्तिक्य या आस्तिकता का शाब्दिक अर्थ है- आस्था। जहाँ आस्था होती है, वहीं पारस्परिक-विश्वास होता है और जहाँ विश्वास होता है, वहाँ निर्भयता होती है और जहाँ निर्भयता होती है, वहाँ तनाव नहीं होता, क्योंकि आज तनावग्रस्तता का मूल कारण एक-दूसरे के प्रति अनास्था या अविश्वास ही है। सम्यकदर्शन के आठ दर्शनाचार और तनाव - उत्तराध्ययनसूत्र में सम्यग्दर्शन की साधना के आठ अंगों का वर्णन है। ये आठ अंग इस प्रकार हैं -निःशंकित, निःकांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढवृत्ति, उपबृंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना इन आठ अंगों में से कुछ अंग तनावमुक्ति के साधन हैं। __ निःशंकता - संशयशीलता का अभाव ही निःशंकता है। जिन-प्रणीत तत्त्वदर्शन में शंका नहीं करना, उसे यथार्थ एवं सत्य मानना ही निःशंकता है।54 शंका दीमक की तरह होती है, जिसे समाप्त न किया जाए, तो वह अंदर-ही-अंदर हमारी सोचने-समझने की क्षमता को खत्म कर देती है। शंका से मानसिक-संतुलन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है। शंका व्यक्ति को किसी पर भी विश्वास नहीं करने देती और यदि व्यक्ति विश्वास कर भी ले, तो वह भी संशयात्मक-विश्वास होता है, जो व्यक्ति के हर रिश्ते को चाहे वह पारिवारिक हो, सामाजिक हो या धार्मिक हो, उसे तोड़ देता है, साथ ही गलत धारणाएँ भी उत्पन्न करता हैं। इन गलत धारणाओं से तनाव उत्पन्न होता है | अविश्वास भय को उत्पन्न करता है। तनावमुक्ति के लिए भय से मुक्त होना आवश्यक है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साध्य, साधन और साधना-पथ- इन तीनों पर अविचल श्रद्धा होनी चाहिए। जिस . साधक की मनःस्थिति संशयात्मक होगी, वह संसार में परिभ्रमण करता रहेगा तथा अपने लक्ष्य को नहीं पा सकेगा। "जिस साधक की 513 उत्तराध्ययनसूत्र - 28/31 : 514 आचारांगसूत्र - 1/5/5/163 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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