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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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बताया है, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। यह आस्था या श्रद्धां की अवस्था है। आस्था और विश्वास ही अभय प्रदान कर हमें तनावमुक्त बना देते हैं। सम्यक्त्व के पाँच अंग और तनाव -
___सम्यक्दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है और मोक्ष की प्राप्ति अर्थात् तनावमुक्ति की अवस्था। तनाव से मुक्ति प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को सम्यक् दृष्टिकोण प्राप्त करना होगा और उसके लिए व्यक्ति को सम्यक्त्व के उन पाँचों अंगों को अपनाना होगा, जिनसे सम्यग्दृष्टि की उपलब्धि होती है। जब तक साधक इन्हें अपना नहीं लेता है, तनावों से मुक्त नहीं हो सकता है, क्योंकि यही सम्यक्त्व मोक्ष की उपलब्धि कराता है। सम्यक्त्व के वे पांच अंग इस प्रकार हैं -
सम - सम्यक्त्व का पहला लक्षण है- 'सम'। सामान्यतया, 'सम' शब्द के दो अर्थ हैं - पहले अर्थ में यह समानुभूति है, अर्थात् सभी प्राणियों को अपने समान समझना। जहाँ राग होता है, वहाँ द्वेष भी होता है और जहाँ राग, द्वेष होते हैं, वहीं तनाव उत्पन्न होता है। राग, द्वेष ही व्यक्ति के समभाव को क्षीण करते हैं। ऐसा व्यक्ति ही प्राणियों की हिंसा करता है। हिंसा से.तनाव उत्पन्न होता है। दूसरे, यही समभाव 'आत्मवत् सर्वभूतेषु के सिद्धान्त की स्थापना करता है, जो अहिंसा का आधार हैं। अहिंसा ही सम्पूर्ण विश्व में सुख-शांति फैलाती है। हिंसा व्यक्ति के मन में भय पैदा कर देती है। व्यक्ति यही चिन्तन करता रहता है कि मुझे या मेरे परिवार को कोई नुकसान न पहुंचा सके। भय उसका मानसिक-संतुलन बिगाड़कर उसे तनावग्रस्त बना देता है, उसके जीवन की शांति भंग कर देता है, फिर धीरे-धीरे अपने बचाव के लिए वह हिंसात्मक-प्रवृत्तियाँ भी करने लगता है। कहा जाता है कि एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है, उसी प्रकार हिंसात्मक व्यक्ति पूरे समाज को, देश को और पूरे विश्व को हिंसात्मक बना देता है। इस प्रकार, व्यक्ति ही क्या, पूरा विश्व ही इन हिंसात्मक-प्रवृत्तियों से तनावग्रस्त हो जाता है। इस तनावपूर्ण स्थिति से तनावमुक्त अवस्था में जाने के लिए व्यक्ति को ‘समभाव' में रहना होगा, सभी को एक समान . समझना होगा। बृहद्कल्पभाष्य में कहा गया है- "जो तुम अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए भी चाहो तथा जो तुम अपने लिए नहीं
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