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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
कारणों को जाने।" 508 किसी भी साधारण व्यक्ति के लिए पूर्णतया राग-द्वेष से मुक्त होना सम्भव नहीं है, फिर भी उसकी राग-द्वेषात्मक वृत्तियों में स्वाभाविक रूप से जब कमी होती है, तो वह स्वतः ही. शांति का अनुभव करता है। इस स्वाभाविक परिवर्तन के कारण वह अयथार्थ को अयथार्थ मान लेता है एवं असत्य को असत्य समझकर सत्य की ओर अभिमुख होता है। इसके पश्चात् उसे यह भी ज्ञात हो जाता है कि उसका दृष्टिकोण दूषित है, अतः इसका परित्यांग कर देना चाहिए। यद्यपि यहां सत्य तो प्राप्त नहीं होता, लेकिन असत्यता और उसके दुष्परिणामों का बोध हो जाता है। वह यह जान जाता है कि उसकी चेतना की तनावपूर्ण स्थिति का कारण क्या है? परिणामस्वरूप, उसमें तनावमुक्ति की अभीप्सा जाग्रत हो जाती है। यही तनावमुक्ति, की अभीप्सा ही तनावमुक्ति की अवस्था तक पहंचाती है। जैसे-जैसे वह तनावमुक्ति के पथ पर अग्रसर होता जाता है, ज्ञान और चारित्र की शुद्धता से पुनः तनाव के कारणों अर्थात् राग-द्वेषादि में क्रमशः कमी होती जाती है। इसके परिणामस्वरूप, उसके दृष्टिकोण में यथार्थता या सम्यक्ता आ जाती है और यही सम्यक्ता तनावमुक्ति की अवस्था को प्राप्त करती है। 'आवश्यकनियुक्ति 509 में कहा गया है- "जल. जैसे-जैसे स्वच्छ होता जाता है, त्यों-त्यों द्रष्टा उसमें प्रतिबिम्बित रूपों को स्पष्टतया देखने लगता है, उसी प्रकार अन्तर की मलिनता ज्यों-ज्यों समाप्त होती जाती है; तत्त्व-रुचि जाग्रत होती जाती है, त्यों-त्यों तत्त्वज्ञान प्राप्त होता जाता है और उस तत्त्वज्ञान को आत्मसात कर व्यक्ति मुक्ति को प्राप्त करता हैं। इसे जैन-परिभाषा में प्रत्येकबुद्धों का (स्वतः ही सत्य को जानने का मार्ग) साधना-मार्ग कहते हैं, जो मोक्ष रूपी लक्ष्य पर पहुंचाता है और यह मोक्ष मंजिल ही तनावमुक्ति की अवस्था है। सामान्य व्यक्ति के लिए स्वतः ही यथार्थता को जानना या सम्यकदृष्टि होना सम्भव नहीं है। जब तक व्यक्ति सत्य को जानता नहीं है, वह सन्देहशील रहता है और सन्देह या संशय में होना भी तनाव ही है। संदेहशील या संशयात्मा व्यक्ति तनाव से मुक्त नहीं हो सकता। सत्य की स्वानुभूति का मार्ग कठिन है। सामान्य साधक के लिए दूसरा सरल मार्ग यह है कि जिन्होंने स्वानुभूति से सत्य को जाना है और स्वयं को तनावमुक्त बनाया है, उनकी अनुभूति ने जो भी सत्य का स्वरूप
508 जैन,बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-1, पृ. 50 509 आवश्यकनियुक्ति, 1163
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