________________
250
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
ध्यानशतक में ध्यान के लक्षण -
ध्यानशतक भी पूर्णतः ध्यान पर ही आधारित ग्रन्थ है। ध्यान के बिना समत्व और समत्व के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है, अतः तनावप्रबन्धन के लिए ध्यान आवश्यक है। ध्यानशतक में भी ध्यान के स्वरूप, लक्षण, आलम्बन आदि की विस्तृत चर्चा हुई है। ध्यानशतक ध्यान के चार भेदों का निरूपण करने से पूर्व ध्यान के लक्षण का इस प्रकार विवेचन करता है- "स्थिर अध्यवसाय ध्यान है। स्थिर अध्यवसायों को ध्यान कहा जाता है, क्योंकि भावना, अनुप्रेक्षा और चिन्तन को स्थिर करने में ध्यान सहायक है। वस्तुतः, ध्यानशतक में भी ध्यान के प्रकार या भेद, ध्यान के लक्षण वही बताए गए हैं, जो स्थानांगसूत्र में कहे गए हैं, अन्तर सिर्फ इतना है कि इसमें सभी ध्यानों की विस्तृत चर्चा की गई
है
आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान को तनावयुक्त होने का कारण कहा गया है और धर्मध्यान और शुक्लध्यान को तनावमुक्ति का हेतु बताया है। ध्यानशतक में जिनभद्रगणि लिखते हैं- "आर्त और रौद्र-ध्यान संसार के कारण हैं और अन्तिम दो ध्यान धर्मध्यान और शुक्लध्यान निर्वाण में सहायक हैं। वस्तुतः, जो संसार का कारण है, वही तनावग्रस्तता का कारण है और जो निर्वाण में सहायक तत्त्व हैं, वे ही तनावमुक्ति के कारण हैं।
ध्यानशतक में धर्मध्यान के वे ही भेद, लक्षण, आलम्बन एवं अनप्रेक्षा आदि दिए गए हैं, जो स्थानांग में हैं, साथ ही, ध्यानशतक में शुभध्यान अर्थात् धर्मध्यान के पहले अभ्यास के लिए चार भावनाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वे भावनाएं इस प्रकार हैं1. ज्ञान-भावना, 2. दर्शन-भावना, 3. चारित्र-भावना और ' 4. वैराग्य-भावना।
वस्तुतः देखा जाए, तो ये भावनाएँ भी तनावमुक्ति के साधन ही हैं। 'ध्यान मन की विशुद्धि करता है। 192 'दर्शन से शंका-कांक्षादि दोषों से रहित होता है।493 चारित्र और भावना से नवीन कर्मों का आस्रव नहीं
490 ध्यानशतक -2
ध्यानशतक -5
492 ध्यानशतक -31
ध्यानशतक -32
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org