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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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होता है।494 वैराग्य-भाव से पूरित ऐसे व्यक्ति का चित्त सहज स्थिर हो जाता है, अर्थात् वह तनावमुक्त हो जाता है।95 इच्छा-निर्मूलन और तनावमुक्ति -
जैसा कि हमने पूर्व में उल्लेख किया है कि तनाव के अनेक कारणों में से एक कारण व्यक्ति की इच्छाएँ व आकांक्षाएँ भी हैं। व्यक्ति दूसरों से, अथवा अपने परिजनों से, अथवा अपने परिवेश से यह अपेक्षा रखता है कि उसकी इच्छा की पूर्ति हो। जैसा कि पूर्व में कहा गया हैइच्छाएँ अनन्त हैं। आचारांग में भी लिखा है- "कामा दुरतिक्कम्मा", अर्थात कामनाओं का पार पाना बहुत कठिन है।496 "इच्छाएँ आकाश के समान अनन्त होती हैं।"497 उनका कोई अन्त नहीं है और उनकी पूर्ति के साधन सीमित हैं। सीमित साधनों से असीमित इच्छाओं की पूर्ति सम्भव नहीं होती, अतः इच्छाएँ अपूर्ण रहती हैं। अपूर्ण इच्छाएँ चेतना में तनाव उत्पन्न करती हैं, अतः तनावमुक्ति के लिए इच्छाओं का निर्मूलन करना आवश्यक है। दशवैकालिक में भी कहा गया है- "वह साधना कैसे कर पाएगा, जो कि अपनी कामनाओं-इच्छाओं को रोक नहीं पाता?"498 तनावमुक्ति के लिए इच्छाओं को दूर करना होगा। भगवान महावीर ने कहा भी है- “कामे,कमाही कमियं खु दुक्खं, अर्थात् कामनाएं ही दुःख का मूल कारण हैं, अतः कामनाओं या इच्छाओं का निरोध करना ही तनावों या दुःखों को दूर करना है।
. दुर्भाग्य से वर्तमान में जो अर्थनीति चल रही है, उसके अनुसार यह माना जाता है कि इच्छाओं में वृद्धि की जाए। विज्ञापन के द्वारा व्यक्ति की इच्छाओं को उत्तेजित करने का प्रयत्न किया जाता है और उसके पक्ष में यह कहा जाता है कि जब इच्छाएँ बढ़ेंगी, तो वस्तुओं की मांग बढ़ेगी। मांग बढ़ने से उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने की प्रेरणा मिलेगी, उत्पाद बढ़ाने की वृत्ति से लोगों को रोजगार मिलेगा और उससे लोगों की गरीबी दूर होगी। दूसरे, उत्पादन के बढ़ने से और उपभोक्ता में क्रय की इच्छा होने से व्यापार बढ़ेगा। व्यापार के बढ़ने से मुनाफा
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494 ध्यानशतक -33. 495 ध्यानशतक -34
आचारांगसूत्र - 1/2/5
इच्छा हु आगाससमा अणंतिया। - उत्तराध्ययनसूत्र - 9/48 498
कहं नु कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारए। - दशवैकालिकसूत्र -211 दशवैकालिकसूत्र - 2/5
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