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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 249 2. एकत्ववितर्क-अविचार - इस ध्यान में मनोवृत्ति में इतनी स्थिरता हो जाती है कि जीव एक ही विश्लेषित गुण या पर्याय पर अपने चिन्तन को केन्द्रित कर लेता है। 3. सूक्ष्मक्रिया-अनिवृत्ति - इसमें मन, वचन और काया की स्थूल क्रियाएँ तो रुक जाती हैं, किन्तु उनकी सूक्ष्म क्रियाएँ चलती रहती हैं। उदाहरण - हाथ, पाँव का हिलना-डुलना तो बंद हो जाता है, परन्तु स्वप्न आदि की क्रियाएँ चलती रहती हैं। 4. समुछिन्नक्रिया अप्रतिपाती - इस ध्यान में मन, वचन और काया की सूक्ष्म प्रवृत्तियाँ भी समाप्त हो जाती हैं। इस ध्यान का ध्याता चौदहवें गुणस्थान को प्राप्त कर पाँच हृस्व स्वरों या व्यंजनों के उच्चारण में जितना समय लगता है, उतने समय में मुक्त हो जाता है। ध्यान के उपर्युक्त प्रकारों का तनाव-प्रबन्धन के साथ क्या सम्बन्ध है, यह इसी अध्याय के पूर्व में दिया गया है। स्थानांगसूत्र में शुक्लध्यान के चार लक्षण बताए गए हैं, जो निम्न हैं - ___ 1.. अव्यथ-व्यथा से रहित अर्थात् परीषह या उपसर्गादि से पीड़ित . नहीं होने वाला। 2. असम्मोह -देवादिकृत माया से मोहित नहीं होने वाला। 3. विवेक - सभी संयोगों को आत्मा से भिन्न मानने वाला। 4. व्युत्सर्ग - शरीर और उपधि से ममत्व का त्याग कर पूर्ण निःसंग हो जाने वाला। तनावमुक्त व्यक्ति में भी ये ही लक्षण पाए जाते हैं। वह किसी भी व्याधि, रोग, परीषह या उपसर्गादि से दुःखी नहीं होता है और न ही किसी संयोग से प्रसन्न होता है। वह मात्र शांति व आनंद का अनुभव करता है, क्योंकि उसके अन्तर्मन में क्षमा, निर्लोभता, नैतिकता, सरलता, मृदुता, सहिष्णुता आदि का वास होता है। स्थानांगसूत्र में शुक्लध्यान के चार आलम्बन भी बताए हैं, जो तनावमुक्त व्यक्ति में गुणरूप में विद्यमान रहते हैं1. क्षान्ति (क्षमा), .. 2. मुक्ति (निर्लोभता), 3. आर्जव (सरलता), 4. मार्दव (मृदुता)। 489 स्थानांगसूत्र - 4/1/71 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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