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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति प्रो. टी. जी. कलर कहते हैं- आज के युग में जहाँ लोग अपने-अपने मत से स्वयं को महान् मानते हुए दूसरों की निन्दा कर अशांति या तनावयुक्त माहौल उत्पन्न करते हैं, वहाँ अनेकांत दृष्टिकोण तनावमुक्ति के लिए रामबाण - सा काम करता है। 15 वर्तमान में विश्व कई समस्याओं का सामना कर रहा है। उन्हीं समस्याओं में अगली समस्या है, पर्यावरण - असंतुलन की । पर्यावरणअसंतुलन सिर्फ मानव-जीवन और उसके आसपास के वातावरण को ही नहीं, अपितु अन्य प्राणियों एवं पेड़-पौधों की जिन्दगी पर भी असर डालता है। आज के वैज्ञानिक युग में नई तकनीकों के आविष्कार से जितना भौतिक सुख मिलता है, उससे कहीं ज्यादा शारीरिक व मानसिक तनाव मिलता है। वैज्ञानिक -यन्त्रों से जो दूषित गैस निकलती है, वह प्राकृतिक वातावरण को दूषित कर देती है, जिसका प्रभाव पानी, पेड़-पौधों, हवा आदि पर पड़ता है। जैनधर्म में इन्हें एकेन्द्रिय जीव माना गया है । " आचारांग के पहले अध्ययन में इन व्यवहारों का विस्तार से विवेचन मिलता है। हवा और पानी मानव के जीवन जीने का आधार हैं और इनके दूषित होने पर मानव-मन व शरीर भी तनावयुक्त हो जाता 16 हैं । 23 आज विश्व को एक नहीं, अनेक समस्याओं ने घेर रखा है। जहाँ एक ओर पूरे विश्व में इन समस्याओं के कारण तनाव बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर व्यक्तिगत समस्याएं भी व्यक्ति को तनावग्रस्त कर रही हैं। बेरोजगारी की समस्या, अशिक्षा की समस्या, समय प्रबंधन न होने की समस्या, मंहगाई की समस्या, पानी की कमी की समस्या, बिजली की समस्या आदि। ये समस्याएं प्रत्येक के जीवन में घटित होती हैं। कहा भी गया है- 'संघर्ष ही जीवन है।' कठिनाइयों का सामना तो राम और कृष्ण जैसे अवतारों को भी करना पड़ा। भगवान महावीर ने भी अपने साढ़े बारह वर्ष के साधनाकाल में अनेक समस्याओं का सामना किया, किन्तु जैन - सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हुए और उनका पालन करते हुए पूर्णतः तनावमुक्त हुए, अर्थात् मोक्ष प्राप्त किया । 1. तनाव का स्वरूप एवं उसके प्रभाव 15 Vaishali Institute research bulletin, No. 4, P. 31 16 आचारांग (सम्पूर्ण पहला अध्ययन), 1/1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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