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________________ 242 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति रहते हैं। यह मेरा है, वह मेरा है -इस ममत्वबुद्धि के कारण ही व्यक्ति दुःख पाता है। इस बात की पुष्टि सूत्रकृतांग से होती है। उसमें वर्णित है -"ममाइं लुप्पई बाले',15 जब तक ममत्व का त्याग नहीं होगा, तनाव-मुक्ति मिलना सम्भव नहीं है। मरुदेवी माता ने भी जब पुत्र से मेरेपन के भाव का त्याग किया, उसी वक्त केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्ति को प्राप्त हो गई। जितना-जितना त्याग बढ़ता जाएगा, व्यक्ति की ममत्वबुद्धि या आसक्ति घटती चली जाएंगी और जैसे-जैसे ममत्वबुद्धि या आसक्ति घटेगी, तनावमुक्ति की अनुभूति होगी। इस ममत्ववृत्ति या मेरेपन के विकल्प की समाप्ति ध्यान से होगी, अतः ध्यान तनाव-प्रबन्धन की एक विधि भी है। यहाँ उसकी चर्चा तनाव-प्रबंधन की एक विधि के रूप में की जा रही है। स्थानांगसूत्र और ध्यानशतक में तनाव-प्रबंधन की विधिध्यानसाधना स्थानांगसूत्र और ध्यानशतक- दोनों ही संभवतः जैन-परम्परा के ध्यान सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं। जहाँ स्थानांगसूत्र में ध्यान के प्रकार, लक्षण आदि की चर्चा है, वहाँ ध्यानशतक पूर्णतया ध्यान का ही ग्रन्थ है। इसमें भी ध्यान के लक्षण, प्रकार आदि की विस्तृत चर्चा है। जैन-परम्परा के ग्रंथों में जहाँ एक ओर राग-द्वेष को तनाव का मूलभूत कारण बताया गया है, वहीं दूसरी ओर, तनावमुक्ति के लिए ध्यान-साधना को एक उचित साधन बताया गया है। .. वस्तुतः, ध्यान साधन भी है और साधना भी है। मन और इन्द्रियों को नियंत्रण करने की शक्ति ध्यान में ही है। तनावमुक्तिरूपी लक्ष्य की प्राप्ति ध्यान-साधना से ही सम्भव है। इस साधना से साध्य को प्राप्त करने का साधन भी ध्यान ही है। ध्यान अगर सही दिशा में हो, तो वह तनावमुक्ति की ओर ले जाता है, अन्यथा वह तनावग्रस्तता का कारण बन जाता है। जैनदर्शन के अनुसार, आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल -इन चार ध्यानों में से आर्त और रौद्र-ध्यान तो तनावों का कारण हैं या तनाव-रूप ही हैं, जबकि धर्म और शुक्ल-ध्यान तनावों से मुक्ति के हेतु हैं। वस्तुतः, शुक्लध्यान तो तनावरहित अवस्था.का ही सूचक है। सूत्रकृतांग -2/1/1/4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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