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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
4. . व्युत्सर्ग- तनाव-उत्पत्ति का मुख्य कारण ममत्व है। इस अवस्था में शुक्लध्यानी अपने शरीर, उपधि आदि के प्रति ममत्व-भाव का पूर्ण त्याग कर देता है। - स्थानांगसूत्र में शुक्लध्यान के चार आलम्बन बताए गए हैं - 1. शांति, 2. मुक्ति (निर्लोभता), 3. आर्जव (सरलता) और 4. मार्दव। डॉ. सागरमल जैन लिखते हैं- शुक्लध्यान के ये चार आलम्बन चार कषायों के त्यागरूप ही हैं। वस्तुतः, तनाव का मूल कारणं कंषाय हैं और कषाय का पूर्णतः त्याग ही तनावमुक्ति है। पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था ही. शुक्लध्यान है। आचारांग में ममत्व का स्वरूप, ममत्व के त्याग एवं तृष्णा पर प्रहार -
यह मेरा धन है, मेरा राज्य है, मेरी वस्तु है- ऐसा मानना ममत्व. है, ममता है। परिवार या सम्पत्ति के मोह में बंधी हुए व्यक्ति की ममत्वबुद्धि ही व्यक्ति के तनाव का हेत होती है। आचारांग में लिखा हैं- "यह मेरी माता है, मेरी बहन है, मेरा भाई है, मेरा पुत्र है, मेरी पत्नी है, मेरे संगी-साथी हैं, इन्होंने मेरे लिए भोजन, वस्त्र, मकान आदि की व्यवस्था की है- इस प्रकार आसक्त व्यक्ति दिन-रात बिना विचार किए दुष्कर्म करता है। वस्तुतः, 'पर' पर 'स्व' का आरोपण ही ममत्वबुद्धि का लक्षण है। प्राणी इस ममत्व-भाव के कारण ही संसार में जन्म-मरण करता है। जैनधर्म का यह मानना है कि जन्म-मरण दुःख है। यह दुःख ही तनाव है। व्यक्ति जिस वस्तु को "मैं रूप मानता है, या मेरी मानता है, उसका विनाश या वियोग अवश्य ही होता है और जब उस वस्तु का नाश हो जाता है, तो यह मेरापन ही दुःख का या तनाव का कारण बन जाता है। गौतमस्वामी को भी तब तक केवलज्ञान प्राप्त नहीं हआ, जब तक उन्होंने प्रभु महावीर पर अपनी यह ममत्वबुद्धि रखी थी कि वे उनके गुरु हैं। जब उनकी ममता टूटी, तब ही उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया।
ममत्वबुद्धि व्यक्ति को बांधकर रखती है। ममत्वबुद्धि के अनेक उदाहरण जैन-कथाओं में मिलते हैं। नन्दन मणियार को अपनी बनाई पानी की बावड़ी से इतनी अधिक ममता जुड़ी थी कि उन्होंने मरकर
स्थानांगसूत्र - 4/71
जैन साधना पद्धति में ध्यान - डॉ. सागरमल जैन, प्र. 31 469 आचारांग -2/1/63
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