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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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है।435 योग शब्द का एक अर्थ जोड़ना भी है।436 इस दृष्टि से डॉ. सागरमलजी जैन ने आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की कला को योग कहा है।437 इसी अर्थ में योग को तनावमुक्ति या मोक्ष-अवस्था को प्राप्त करने का साधन मान सकते हैं।
वस्तुतः, ध्यान-साधना और योग-साधना- दोनों ही साधनाएं मन की वृत्तियों को समाप्त कर तनावमुक्त होने के लिए एक साधन बन जाती हैं। जैनदर्शन साधना की दोनों ही प्रक्रियाओं को मन की चंचलता समाप्त करने का साधन मानता है। जिस प्रकार हवा को रोकना कठिन है, सागर की लहरों को रोकना कठिन है, उसी प्रकार मन में उठती विकल्परूपी लहरों को रोकना भी कठिन है, फिर भी आत्म-जाग्रति की अवस्था में यह सम्भव है। ध्यान एवं योग-साधना द्वारा चित्त-निरोध के लिए या तनावमुक्ति के लिए जैन-साधना-पद्धति में एक सरल प्रक्रिया दी गई है, जो निम्न है -
___ ध्यान में सर्वप्रथम मन को वासनारूपी विकल्पों से मोड़कर धर्म-चिन्तन में लगाया जाता है, फिर क्रमशः आत्म सजगता के द्वारा इस चिन्तन की प्रक्रिया को शिथिल किया जाता है। अन्त में, एक ऐसी स्थिति आ जाती है, जब मन पूर्णतः निष्क्रिय हो जाता है, उसकी भागदौड़ समाप्त हो जाती है। इस स्थिति में उसकी तनावों को जन्म देने की क्षमता समाप्त हो जाती है और व्यक्ति शांति एवं आनंद की अनुभूति करता है। यह अनुभूति ही पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है। आर्त और रौद्र-ध्यान तनाव के हेतु तथा धर्म और शुक्ल-ध्यान से तनावमुक्ति -
इसके पूर्व ध्यान और योग-साधना में हमनें ध्यान के महत्व एवं ध्यान की प्रक्रिया का विवेचन किया है। ध्यान के आलम्बन तो अनेक हो सकते हैं, किन्तु ध्यान किसका किया जाए ? ध्यान का कौनसा आलम्बन तनाव को अधिक बढ़ा देगा और कौनसा तनावमुक्ति का सम्यक् साधन बनेगा ? इस प्रश्न का उत्तर हमें ध्यान के प्रकारों को समझने से मिल
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योगश्रियत्त वृत्ति निरोधः । -योगसूत्र-1/2, पतजंलि
'युजपी योगे', हेमचन्द्र धातुमाला, गण-7 437 जैन साधना पद्धति में ध्यान, डॉ. सागरमल जैन, पृ.13
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