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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 225 को प्राप्त कर सकता है। आचार्य श्रीमद्विजयकेशरसूरिजी महाराज ने अपनी कृति 'आत्मशुद्धि' में कहा है - "विकल्प जाल जम्बालान्निर्गतोऽडयं सदा सुखी आत्मा तत्र स्थितो दुःखीत्यनुभूय प्रतीयताम् ।।111024 अर्थात, विकल्पों के समूहरूपी दलदल में से बाहर निकली हुई, यह आत्मा सदा सुखी है, और उन विकल्पों के जाल में रही हुई आत्मा सदा दुःखी है- इस बात का अनुभव या प्रतीति करो। विकल्प करना मन का कार्य है, क्योंकि मन विकल्पों के आधार पर ही खड़ा हुआ है। आत्मा अपने ज्ञाता-द्रष्टाभाव से उसे मात्र देखे और जाने, किसी भी प्रकार की इच्छा या विकल्प न करे और स्व-स्वभाव या ज्ञातादृष्टाभाव में ही रहे, तो वह तनावमुक्त अवस्था में ही रहेगी। मन की चंचलता, मन की विकल्पता, इच्छाओं और आकांक्षाओं को बढ़ाती है। ये वस्तुओं पर राग-द्वेष के भाव जाग्रत करते हैं। ये राग-द्वेष के भाव भोगाकांक्षा या वासना को प्रदीप्त करते हैं और जब कोई वासना पूर्ण नहीं होती, तब क्रोध आदि कषाय व्यक्ति के मन में अपना घर बना लेते हैं तथा व्यक्ति अवसाद और क्षोभ में डूबकर तनावग्रस्त हो जाता है। कषायरूपी रोग शरीर और मन को और अधिक अपने जाल में फंसा लेता है और आत्मा अपना ज्ञाता-द्रष्टाभाव भूलकर कर्ता-भोक्ता रूप में रमण करने लग जाती है, अर्थात् अपना स्व-स्वभाव भूलकर विभावदशा में चली जाती है। अगर आत्मा अपने स्व-स्वरूप में लौट आए, अर्थात् उसे यह भान हो जाए कि वह शुद्ध आत्मा है एवं उसका ज्ञाताद्रष्टाभाव जाग्रत हो जाए, उसे अपनी अनंत शक्ति का भान हो जाए और अपनी राग-द्वेष, कषाय आदि रूप विभावदशा से वह स्वयं को मोड़ ले, तो आत्मा को स्व-स्वरूप को पाना सुलभ हो जाएगा। आत्मा के स्वरूप को पाने की यह प्रक्रिया ही तनावमुक्ति की प्रक्रिया है। राग-द्वेष या मोह-ममता और इन्द्रियजन्य आकांक्षावश व्यक्ति अपना सुख इच्छाओं- आकांक्षाओं की पूर्ति में एवं 'पर' पदार्थों में, भोग में, खोजता है और स्वय को तनावमुक्त बनाने के लिए कषायों को अपनाता है, जो उसे और अधिक तनावयुक्त बना देते हैं। आचारांग में 424 श्री आत्मशुद्धि, केशरसूरिजी म.सा., 4/1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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