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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
अनुभव को अनुभव के आधार पर ही रखकर सकारात्मक सोच रखना तनावमुक्ति का सरल उपाय है। सकारात्मक सोच बनाए रखने के लिए सहायक तत्त्व - 1. . क्रोध के स्थान पर शांति को महत्व दें। क्रोध नकारात्मक सोच को जन्म देता है, नकारात्मक सोच अशान्ति को और अशान्ति दुःख या तनाव को जन्म देती है, इसलिए क्रोध को जीवनशैली का अंग नहीं बनाएं। 2. सुसंस्कारों को ग्रहण करें। व्यक्ति को ऐसे माहौल या वातावरण में रहना चाहिए जहां अच्छे संस्कार दिए जाते हों। 3. उच्च स्तर की शिक्षा ग्रहण करे। बच्चों को वैज्ञानिक के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दे। 4. हर परिस्थिति में प्रसन्न रहें व सकारात्मक सोच रखें। 'जो होता है, अच्छे के लिए होता है" ऐसी विचारधारा रखें। 5. अतीत की गलतियों से सीख लें और सार्थक सोच के साथ वर्तमान क्षण में जिएं।
मुनि चन्द्रप्रभजी लिखते हैं- 'नकारात्मक-विचार अनायास ही चले आते हैं, किन्तु सकारात्मक विचार को स्वयं के प्रयास से लाना होता है।*12 अतः, सकारात्मक सोच को लाने का प्रयास करते रहना चाहिए, ताकि व्यक्ति तनावमुक्त रहे। सकारात्मक सोच की उपलब्धियां -
सकारात्मक सोच से निराशा, तनाव, घुटन समाप्त हो जाती है, किसी भी कार्य को करने में एक उत्साह उत्पन्न होता है। सकारात्मकसोच से व्यक्ति में आत्म-विश्वास जाग जाता है, जो उसे सफलता के शिखर पर पहुंचाता है। सार्थक सोच व्यक्ति के क्रोध को नियंत्रण में रखती है। वह व्यक्ति में से ईर्ष्या, बैर, लोभ की भावना को समाप्त कर देती है। विधायक विचार, करने से व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेता है। विधायक मन के बने रहने से व्यक्ति अपने चारों और विधायक स्पंदनों की आभा का सृजन कर लेता है, जिससे स्वयं को ही नहीं, बल्कि जो भी उसके संपर्क में आता है, उसे भी लाभ पहुंचता है।
412 सकारात्मक सोचिए, श्री चन्द्रप्रभ सागर, पृ.9
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