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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति असंतुलन कई विकृतियों को उत्पन्न करता है। यह व्यक्ति को कमजोर और आलसी बना देता हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर पाता और परिणामस्वरूप वह तनावग्रस्त हो जाता है, किन्तु जब मन सकारात्मक रूप से आवेशित होता है, तब इसके विपरीत परिणाम होते हैं, प्राण-प्रवाह संतुलित होता है, व्यक्ति में एक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो उसके कार्य को सफल बनाती है और सफ़लता व्यक्ति को तनावमुक्त रखती है। कई तत्त्व ऐसे होते हैं, जो हमारी सोच को प्रभावित करते हैं। सोच को प्रभावित करने वाली स्थितियों में जो व्यक्ति सकारात्मक - विचार करता हैं, वह तनावग्रस्त नहीं होता है, किन्तु नकारात्मक - विचार करने वाले व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाते हैं । सोच को प्रभावित करने वाले तत्त्व - (अ) व्यक्ति की शिक्षा- व्यक्ति जिस स्तर की शिक्षा प्राप्त करता है, उसकी सोच भी उतनी ही विकसित होती है। शिक्षा सिर्फ आजीविका चलाने या व्यवसाय करने तक ही सीमित नहीं है, शिक्षा से व्यक्ति के विचार व संस्कार भी बनते हैं। उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की सोच भी उच्च रहती है। उसमें यह क्षमता होती है कि वह तनावपूर्ण स्थिति में भी संघर्ष कर तनावमुक्ति को प्राप्त करता है । (ब) वातावरण 'जिस वातावरण में व्यक्ति रहता है, उसकी सोच भी उसी वातावरण के अनुरूप होती है। जैसा वातावरण मिलेगा, वैसा ही विकास होगा। बच्चा अगर दूषित और कलह के वातावरण में रहेगा, तों उसके विचारों में गलत धारणाएं उत्पन्न होंगी। उसकी मानसिकता ईर्ष्या, कलह, छल, कपट आदि की होगी । गलत विचार और गलत मानसिकता मानसिक संतुलन को अस्तव्यस्त कर देती है। इसके विपरीत, अगर सोच सम्यक् होगी, तो जीवन में सुख-शांति रहेगी । - Jain Education International (स) जीवन में अर्जित होने वाले अनुभव व्यक्ति की सोच और मानसिकता को प्रभावित करने वाला यह तीसरा तत्त्व है। जीवन में लगने वाली ठोकरें ही सम्भलना सिखाती हैं । अतीत में हुई गलतियों को गलतियां मानकर वर्त्तमान में जीना तनावमुक्ति के लिए सबसे सरल उपाय है, किन्तु व्यक्ति अतीत में हुए हादसों और गलतियों को भी सही समझकर उन्हें गले से लगाए रखता है, जो उसे तनावग्रस्त कर देते हैं तथा उसमें नकारात्मक सोच उत्पन्न करते हैं। जीवन में अर्जित वालें 213 - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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