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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
कारण माना जाता है। मांसाहारी हिंसक होते हैं और हिंसक व्यक्ति पूरे विश्व में अशांति और तनाव उत्पन्न कर देता है। महाभारत में लिखा है- “जो सब प्राणियों पर दया करता हैं और मांसभक्षण कभी नहीं करता, वह स्वयं भी किसी प्राणी से नहीं डरता है। वह निरोग और सुखी होता है।"398 जो मनुष्य किसी भी प्राणी को पीड़ा या क्लेश नहीं देता है, वह सबका हितचिन्तक पुरुष अनंत सुख भोगते हुए तनावमुक्त रहता है।
. जैनदर्शन में तो यहां तक कहा गया है कि मांसभक्षण करने से व्यक्ति हर जन्म में दुःखी होता है। स्थानांगसूत्र के चौथे स्थान में यह वर्णित है - चउहि ठाणेहिं जीवा ऐरतियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहामहारम्म्ताह महा परिम्यहयाते पचिदियवहेणं कुणिमाहारेणं ।।399
- अर्थात्, महारम्भ करने से, अत्यन्त ममत्व करने से, पंचेन्द्रिय जीवों के वध से, मांस-भक्षण करने से प्राणी नरक में जाते हैं। वहां निमेष-मात्र के लिए भी उन्हें सुख प्राप्त नहीं होता है।"
जैनधर्म-दर्शन में तो रात्रि भोजन का भी निषेध है, क्योंकि रात्रि में जीव-हिंसा अधिक होती है और हमें पता भी नहीं चलता है कि भोजन के साथ कई सूक्ष्म जीव जीवित या मृत दशा में हमारे शरीर चले जाते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ सकते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी आहार-विवेक आवश्यक है। असंतुलित भोजन शारीरिक तनाव पैदा कर देता है और शारीरिक तनाव मानव की मानसिकता को प्रभावित करता है। जो भी तत्त्व हमारे शरीर पर प्रभाव डालते हैं, वे शरीर के साथ-साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं भावों पर भी असर करते हैं।" योग में तीन प्रकार के भोजन का वर्णन मिलता हैसात्विक भोजन, राजसिक भोजन तथा तामसिक-भोजन ।"400
- सात्विक भोजन करने से शरीर में प्राण का प्रवाह उचित रूप से होता है और मन भी शांत, सकारात्मक और नियंत्रण में रहता है। जब शरीर में प्राण-प्रवाह का संतुलन होता है, तो उत्तेजनाएँ शांत होती
398 महाभारत, अनुशासनपर्व, श्री प्यारचंदजी, पृ. 13 399 स्थानांगसूत्र, चौथा स्थान
मन को नियंत्रित कर तनावमुक्त कैसे रहें - एम.के. गुप्ता, पृ. 20
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