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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
__ शेष अनुप्रेक्षाएँ भी इसी तरह हमारे ममत्व या रागभाव को समाप्त कर हमें तनावमुक्ति या मोक्ष की दिशा में ले जाती हैं। . . कायोत्सर्ग
"कायोत्सर्ग' शब्द का शाब्दिक अर्थ है- शरीर का उत्सर्ग . करना, लेकिन जीवित व्यक्ति शरीर का त्याग कर दे, तो वह जीवित ही
नहीं रहेगा। यहां पर शरीर त्याग से तात्पर्य शरीर और आत्मा के भेदविज्ञान के द्वारा शरीर के प्रति ममत्व का त्याग है। शरीर और आत्मा के भेद-विज्ञान के द्वारा शरीर के प्रति ममत्वबुद्धि का त्याग करना कायोत्सर्ग है, क्योंकि यही ममत्वबुद्धि तनावं का मुख्य कारण है। कायोत्सर्ग का प्रयोग तनावमुक्ति का प्रयोग है। कायोत्सर्ग शरीर में रहे हुए तनाव और ममत्व से होने वाली मानसिक अशांति को दूर करतो है। कायोत्सर्ग का मूल अर्थ तो शरीर के प्रति ममत्व का परित्याग है। ममत्व के विसर्जन से तद्जन्य तनाव का विसर्जन होता है। आध्यात्मिक-दृष्टि से शरीर के प्रति ममत्व के त्याग का अर्थ है- शरीर से आत्मा का भेद-करना। ___ डॉ. सागरमलजी के शब्दों में- "किसी सीमित समय के लिए शरीर के ऊपर रहे हुए ममत्व का परित्याग कर शारीरिक क्रियाओं की चंचलता को समाप्त करने का जो प्रयास किया जाता है, वही कायोत्सर्ग
है।"389
आचार्य भद्रबाह आवश्यकनियुक्ति में शुद्ध कायोत्सर्ग के संबंध में प्रकाश डालते हुए लिखते हैं- "चाहे कोई भक्तिभाव से शरीर पर चन्दन लगाए, चाहे कोई द्वेषवश उसे वसूले से छीले, चाहे जीवन रहे, चाहे उसी क्षण मृत्यु आ जाए, परन्तु जो साधक देह से आसक्ति नहीं रखता है, उक्त सब स्थितियों में समभाव रखता है, वस्तुतः, उसी का कायोत्सर्ग शुद्ध होता है।"39 कायोत्सर्ग में साधक अपने शरीर के प्रति रहे हुए ममत्व का त्याग करता है।
___ व्यक्ति ने अपनी शारीरिक एवं मानसिक सुख-सुविधा के जितने साधन जुटाए हैं, वे साधन ही उसके लिए अशांति के कारण बन रहे हैं। उसकी शारीरिक-कामनाएं जब तक पूर्ण नहीं होती, मानसिक अशांति बनी रहती है। जब तक शरीर से आसक्ति रहेगी, इच्छाएँ और आकांक्षाएँ
389. जैन, बोद्ध और गीता का तुलनात्मक अध्ययन, पृ.-404 190. आवश्यकनियुक्ति, 1548, उदधृत श्रमणसूत्र, पृ.-99
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