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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति जन्म लेती रहेंगी। किसी की भी सारी इच्छाएँ और आकांक्षाएँ आज तक न तो पूर्ण हुई है और न ही कभी पूर्ण होगी। यह एक दुष्चक्र है, जिसमें व्यक्ति निरंतर गतिशील बना रहता है। यह गतिशीलता व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करती है, उसकी मानसिक एवं शारीरिक स्वस्थता को विकृत कर देती है। कायोत्सर्ग शरीर के प्रति हमारी आसक्ति को कम करते हुए शरीर से आत्मा के भेद को स्पष्ट करता है। भेद - विज्ञान की साधना दृढ़ हो जाने पर व्यक्ति की दैहिक - कष्ट या दुःख सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है। उसकी यह धारणा बन जाती है कि यह दुःख और कष्ट शरीर को हो रहा है, मुझे अर्थात् आत्मा को नहीं और यह शरीर तो एक दिन विनाश को प्राप्त होने वाला है, शरीर के प्रति मेरी ममत्वबुद्धि ही मेरे तनावग्रस्त होने का कारण है। ऐसा सोचना भी व्यक्ति को तनावमुक्त बना देता है। जैन - साधना में कायोत्सर्ग का महत्त्व बहुत अधिक है। "प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व कायोत्सर्ग की परम्परा है। 397 कायोत्सर्ग का महत्व बताते हुए आवश्यक नियुक्ति में लिखा है- कायोत्सर्ग सब दुःखों से मुक्त करने वाला है, सब दुःखों से छुटकारा देने वाला है, 392 क्योंकि कायोत्सर्ग सभी प्रकार के तनाव से मुक्ति देने वाला है। कायोत्सर्ग की पहली निष्पत्ति है - तनावमुक्ति । • कायोत्सर्ग की विधि कायोत्सर्ग खड़े रहकर, बैठकर और लेटकर - तीनों मुद्राओं में किया जाता है। खड़े रहकर कायोत्सर्ग करना उत्तम कायोत्सर्ग, बैठकर करना मध्यम कायोत्सर्ग और लेटकर करना . सामान्य कायोत्सर्ग है । 391 392 393 393 पहला चरण - खड़े होकर कायोत्सर्ग का संकल्प करें- "तत्स उत्तरीकरणेणं पायाच्छित करणेणं, विसोहिकरणेणं, विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्धायणट्ठाए ठामि काउसग्गं।” 201 — अर्थात्, मैं शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक - तनावों से मुक्त होने के लिए कायोत्सर्ग का संकल्प करता हूँ । Jain Education International जैन, बौद्ध, और गीता का तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 404 आवश्यक 1476 जीवन विज्ञान और जैन विद्या प्रायोगिक, पृ. - 33 - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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