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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति करना अनुप्रेक्षा है। जैनयोग - सिद्धांत और साधना में लिखा है- "सत्य प्रति प्रेक्षा अनुप्रेक्षा, अर्थात् सत्य के प्रति एकनिष्ठ बुद्धि से देखना अनुप्रेक्षा है। 380 प्रेक्षा में हम शरीर के शक्ति- केन्द्रों को देखते हैं, शरीर में हो रहे प्रकम्पनों का अनुभव करते हैं और अनुप्रेक्षा में या ध्यान में, जो कुछ देखा गया है, उस पर विचार करते हैं। मिथ्या धारणाएँ, मिथ्या कल्पनाएँ ही हमें तनाव के घेरे में ले जाती हैं, हमारी सोच को नकारात्मक बना देती हैं और सत्य इसी दबाव में आकर दब जाता है, तब हम जीवन को इतना तनावग्रस्त बना देते हैं कि तनावमुक्ति के लिए कोई रास्ता नहीं बचता। अनुप्रेक्षा हमारी मिथ्या वृत्तियों को सम्यक् दिशा में ले जाती है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र का बोध अनुप्रेक्षा से ही होता है । 381 दशवैकालिकचूर्णि में लिखा है- " अणुपेहा णाम जो मणसा परियटेइ णो वायाए, " अर्थात् पठित व श्रुत अर्थ का मन से (वाणी से नहीं) चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है । सर्वार्थसिद्धि में लिखा है आदि के स्वभाव का पुनः - पुनः चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है । 382 शरीर जब हम किसी भी धारणा का बार-बार चिन्तन कर उसके वास्तविक रूप को समझते हैं, या शरीर आदि के स्वभाव को समझकर उससे आत्मा का भेद जानते हैं, तो वह चिन्तन सम्यक् चिन्तन होता है, वही तनावमुक्ति प्रदान करता है। अनुप्रेक्षा के प्रयोग से व्यक्ति राग-द्वेष युक्त मान्यताओं से हटकर सत्यता को स्वीकार कर लेता है । 197 तनावमुक्ति के लिये सत्य को जानने के लिए प्राचीन जैनग्रन्थों तथा जैनयोग-सिद्धांत और साधना में बारह अनुप्रेक्षाएं बताई गई हैं । 383 1. अनित्य - अनुप्रेक्षा 2. अशरण - अनुप्रेक्षा 3. संसार- अनुप्रेक्षा 4. अन्यत्व - अनुप्रेक्षा 5. एकत्व - अनुप्रेक्षा 6. अशुचि - अनुप्रेक्षा 381 380 जैन योग सिद्धांत और साधना, पृ. 212 दशवैकालिक चूर्णि, पृ. 26 सर्वार्थसिद्धि - 912/409 382 383 जैन योग सिद्धांत और साधना, पृ. 213 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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