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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
दर्शन-केन्द्र | पिच्यूटरी
ज्योति-केन्द्र पायनियल | शांति-केन्द्र हायपोथेलेमस
भृकुटियों के मध्य ललाट के मध्य में
मस्तिष्क का अग्र भाग
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ज्ञान केन्द्र | कोर्टेक्स
सिर के ऊपर का भाग ...
विधि 379 - चैतन्य केन्द्र-प्रेक्षा का प्रारम्भ शक्ति केन्द्र की प्रेक्षा से किया जाता है, फिर क्रमशः स्वास्थ्य केन्द्र, चाक्षुष-केन्द्रं से ज्ञान केन्द्र की प्रेक्षा की जाती है। प्रत्येक केन्द्र पर चित्त को केन्द्रित कर वहाँ होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव किया जाता है। प्रारम्भ में प्रत्येक केन्द्रों पर दो से तीन मिनट का ध्यान किया जाता है।
इन केन्द्रों पर ध्यान करने से ये केन्द्र जाग्रत हो जाते हैं। हर केन्द्र का अपना एक अलग लाभ है, जैसे- शांति-केन्द्र की प्रेक्षा भावधारा को परिवर्तित करती है, उसे शुद्ध बनाती है। ज्योति केन्द्र और दर्शन-केन्द्र की प्रेक्षा से क्रोध, वासना, लोभ आदि उपशांत हो जाते हैं। संक्षेप में कहें, तो किसी भी केन्द्र को जाग्रत किया जाए, उसकी मंजिल तनावमुक्ति ही है। अनुप्रेक्षा
एक शब्द है- प्रेक्षा, उसका आशय है- देखना। दूसरा शब्द हैअनुप्रेक्षा, 'अनु' उपसर्ग लगते ही 'प्रेक्षा' शब्द का आशय बदल जाता है। अनुप्रेक्षा शब्द का आशय है, चिन्तन-मननपूर्वक देखना।
अधिकांश व्यक्ति जीवन की सत्यता को स्वीकार नहीं कर पाते, क्योंकि उसमें उन्हें कहीं-न-कहीं कोई दुःख होता है। दुःख के कारण ही व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है और स्वयं का विकास नहीं कर पाता है। अनुप्रेक्षा सच्चाई को देखना है, हकीकत का सामना करने की शक्ति है। पूर्व धारणाओं को निकालकर, जो सत्य है, यथार्थ है, उसका चिन्तन
372. प्रेक्षा- ध्यान, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा पृ. 23
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