________________
194
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
ग्रन्थितंत्र ही है।"374 ग्रन्थियों से निकलने वाले हार्मोन ग्रन्थितंत्र ही हैं। ग्रन्थियों के हार्मोन तनाव उत्पन्न करने वाली आदतों, आवेशों, वृत्तियों और वासनाओं को अत्यन्त शक्तिशाली या कमजोर बनाने वाले प्रमुख स्रोत हैं। जैन आचार्य आत्मारामजी म.सा. के अनुसार -"आवेग, क्रोध, मान, माया, लोभ एवं राग-द्वेष आदि ग्रन्थिरूप होते हैं। हमारी दृष्टि में ये हार्मोन बनावमुक्ति में बाधक या साधक बनते हैं।15
दार्शनिक, वैज्ञानिक और चिकित्सक, सभी एकमत से यह कहते हैं कि इन अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का व्यक्ति की भावधारा और मनोदशा के साथ गहरा संबंध है। डा. एम. डब्ल्यू. काप (एम.डी.) ने अपनी पुस्तक ग्लेण्डस अवर इनविजिबल गाइड्स में लिखा है- हमारे भीतर जो ग्रन्थियाँ हैं, वे क्रोध, कलह, ईर्ष्या, भय, द्वेष आदि के कारण विकृत बनती है। जब ये अनिष्ट भावनाएँ जागती हैं, तब एड्रिनल ग्लैण्ड को. अतिरिक्त काम करना पड़ता है। 76 आत्मा और शरीर के बीच संचार करने का माध्यम ये ग्रन्थियाँ हैं। इन ग्रन्थियों से ही आदतों का और तनावों का जन्म होता है।
____जब कोई अनिष्ट इच्छा जागती है, तो ग्रन्थियाँ सक्रिय होने. लगती हैं। इच्छा पूरी नहीं होने पर इन ग्रन्थियों से जो हार्मोन्स निकलते हैं वे नाड़ी-तंत्र से होकर मस्तिष्क में जाते हैं और हमारे मानसिकसंतुलन को विचलित कर देते हैं। ग्रन्थियों का प्रभाव हमारी भावधारा पर पड़ता है। हमारी भावधारा जैसी होगी, उसका प्रभाव ग्रन्थियों पर वैसा ही पड़ेगा। आध्यात्मिक-स्तर पर इन ग्रन्थियों को ही चेतना-केन्द्र कहा जाता है।
___"मनुष्य केवल हड्डी-माँस का ढांचा नहीं है, अपितु भाव-प्रधान चेतनायुक्त ज्ञानमयी शक्ति है।"
शक्ति, ज्ञान, भाव आदि के स्थानों को या जिस स्थान से शक्ति एवं विवके-चेतना जाग्रत की जाती है, उस स्थान को चैतन्य केन्द्र कहा जाता है।
प्रेक्षा ध्यान आधार और स्वरूप प्र. 28 महाप्रज्ञ जी 375. जैन योग सिद्धांत और साधना पृ. 177 376. प्रेक्षा ध्यान : चैतन्य- केन्द्र प्रेक्षा, पृ. 13
प्रेक्षा:- एक परिचय, पृ. 14
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org