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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
निर्मल एवं शांत हो। मन का स्वभाव चंचलता भी है और शांतता भी। चंचलता में तनाव की स्थिति पैदा होती है, तो शांतता में तनावमुक्त स्थिति होती है।
- इसिभासियाई में भी कहा गया है कि चित्त की एकाग्रता ही ध्यान है और जो चित्त की चंचलता है, वह चिन्ता है, उसे ही तनाव या क्षोभ कहते हैं।383
बिना एकाग्रता के मन शांत नहीं होता और बिना मानसिक शांति के एकाग्रता नहीं होती, तब प्रश्न उपस्थित होता है -क्या करना चाहिए? उत्तर है- अपने-आप को देखना चाहिए। अपने प्रति सजग होना चाहिए। जब अपना आत्मदर्शन करेंगे और अपने-आपको समझेंगे, तभी तनावमुक्त होंगे।
__ प्रेक्षा-ध्यान की यह पद्धति शरीर से आरम्भ होकर आत्मा पर समाप्त होती है। इससे तनावमुक्त अवस्था प्राप्त होती है। इसके मुख्य अंग निम्न हैं
___ 1. श्वास-प्रेक्षा,
2.. शरीर- प्रेक्षा, 3. चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा,
4. अनुप्रेक्षा (भावधारा की प्रेक्षा)। 1. श्वास-प्रेक्षा- "जिसमें वर्ण है, गन्ध है, रस है और स्पर्श है, वह पुदगल है, वह पौदगलिक-वस्तु है। श्वास में ये चारों लक्षण पाए जाते हैं, इसलिए श्वास पौद्गलिक है।"365 .
जैसी हमारी भावधारा होगी, वैसी गति से श्वास हमारे शरीर में प्रवेश करेगी। इस संदर्भ में भगवतीसूत्र का उदाहरण प्राणायाम की चर्चा के संदर्भ में दे चुके हैं। भगवान महावीर ने भी यही कहा है कि जब हमारी भावधारा शुद्ध होती है, तो हमें इष्ट गंध, रस, वर्ण और स्पर्श होता है और जब भावधारा अशुद्ध होती है, नकारात्मक सोच होती है, तो अनिष्ट गंध, रस, वर्ण और स्पर्श की अनुभूति श्वास के साथ हमारे शरीर में प्रवेश करती है, जो हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ देती है। मन की शांति
363 इसिभासियाई-22/14 364. प्रेक्षा-ध्यान - आधार और स्वरूप, पृ. 18 100. महावीर का स्वास्थ्य शास्त्र, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ.70
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