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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
प्राणायाम उपचार प्रक्रिया 58 .
सबसे पहले व्यक्ति को सांस लेने का सही तरीका सीखना चाहिए। जिस आसन में शरीर तनावरहित हो, उस पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता हो, वही आसन प्राणायाम के लिए उपयुक्त है। - आवेश हेतु बाएं से पूरक, दांए से रेचक, अवसाद हेतु दांये से पूरक, बाएं से रेचक करना चाहिए। जब ध्यान श्वास-प्रश्वास पर होगा, तो मन शांत होगा, तनावमुक्त होगा और निरन्तर इसके अभ्यास से । पूर्णतः तनावमुक्त स्थिति प्राप्त होगी। . . .
योगकण्डल्यूपनिषद में लिखा है –“भस्त्रिका प्राणायाम से कण्ठ की जलन मिटती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, कुण्डलिनी जागती है। यह प्रक्रिया पापनाशक तथा सुखदायक है ।259 प्रेक्षा ध्यान- आधार और स्वरूप -
.. तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने जैन-आगमों का मंथन करके ध्यान की एक नई प्रक्रिया 'प्रेक्षा-ध्यान' को प्रस्तुत किया
"प्रेक्षा' शब्द 'ईध धातु से बना है, इसका अर्थ है - गहराई से देखना, अथवा गहराई में उतरकर देखना। देखना सामान्य आँखों से किया जाता है, किन्तु प्रेक्षा में देखना अपने अन्तरचक्षु एवं मन के द्वारा होता है।
जैन-साधना- पद्धति में ध्यान की परम्परा तो थी, किन्तु आगमों में उसकी कोई विधि मिलती ही नहीं है। जैन आगमों में 'प्रेक्षा' शब्द प्रयुक्त है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है -"संपक्खिए अप्पगमप्पएंण"- आत्मा के द्वारा आत्मा की संप्रेक्षा करो। तनावमुक्ति के लिए सबसे पहले मन में उठ रहे राग-द्वेष-कषाय आदि को देखना आवश्यक है। जब तक व्यक्ति इन्हें देखेगा नहीं, जानेगा नहीं कि उसे क्रोध आ रहा है, लोभ हो रहा है उसका मोह बढ़ रहा है या द्वेष बढ़ रहा है, तब तक तनाव के कारणों को वह नहीं जान पाएगा और वह तनावग्रस्त होता चला जाएगा। आत्मा को द्वारा आत्मा को देखो, मन के
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58. आसन प्राणायाम, पृ. 183 359. योगाकुण्डल्यूपनिषद-38 360 दशवैकालिक सूत्र -12/571
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