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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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प्राणायाम से प्राण-शक्ति सक्रिय होकर शरीर के अंग-प्रत्यंग में फैलती है और उसे स्वस्थ एवं बलवान् बनाती है।
भगवतीसूत्र में गौतम ने भगवान महावीर से पूछा-भंते ! क्या जीव श्वास-प्रश्वास लेते हैं ? यदि लेते हैं, तो कैसे ? भगवान् ने इसका उत्तर चार दृष्टियों से दिया -1. द्रव्य-दृष्टि से, 2. क्षेत्र-दृष्टि से, 3. काल-दृष्टि से तथा 4. भाव-दृष्टि से।
- भगवान् ने भावदृष्टि से समाधान देते हुए कहा - प्रत्येक जीव श्वास- प्रश्वास लेता है। उसके श्वसन-पुदगल वर्ण, गंध, रस और स्पर्शयुक्त होते हैं। पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श श्वास में विद्यमान हैं। जब मनुष्य की भावधारा शुद्ध होती है, तब इष्ट वर्ण, गंध, रस और स्पर्श-युक्त श्वास गृहीत होती है, तो शरीर स्वस्थ व मन तनावमुक्त होता है और जब भावधारा अशुद्ध होती है, तब श्वास में अनिष्ट वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होते हैं, इससे स्वास्थ बिगड़ जाता है व मन तनावग्रस्त हो जाता है।56
. सूक्ष्म दृष्टि से प्राण. का अर्थ ब्रह्माण्ड भर में संव्याप्त ऐसी ऊर्जा है, जो जड़ और चेतन-दोनों का समन्वित रूप है। प्राण-शक्ति से ही संकल्प-बल मिलता है, यह संकल्प-बल ही - जीवनीशक्ति है। संकल्प-बल के सहारे ही मनुष्य कुविचारों से जूझता है, कुसंस्कारों का निराकरण करता है। अगर आध्यात्मिक-दृष्टिकोण से कहें, तो प्राणायाम वह शक्ति है, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ ही, चित्त की निर्मलता भी बढ़ती है। महर्षि पंतजलि ने प्राणायाम के परिणाम की चर्चा करते हुए लिखा है -
"ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्" प्राणायाम के द्वारा प्रकाश पर आया आवरण क्षीण हो जाता है। प्राणायाम केवल श्वास-प्रश्वास का व्यायाम नहीं है, अपितु कर्मनिर्जरा की भी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिससे चित्त की निर्मलता बढ़ती है। चित्त की निर्मलता ही चित्त की चंचलता को रोकती है और व्यक्ति को तनाव से मुक्त करती है।
356 भगवई-2,3,4....
57. आसन प्राणायाम के विधि-विधान, पृ 134
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