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________________ 186 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति द्रव्यों के सेवन का शिकार होगा और न ही इन्द्रियाँ वासनाग्रस्त होंगी। इन्द्रियों में योगशक्ति का अभाव होने से व्यक्ति तनावग्रस्त होगा। कहा भी गया है - "यथा स्वर्णधातुनां दहन्ते धमनान्मलाः, तथेन्द्रियकृता दोषा दहन्ते प्राणधारणात। जिस प्रकार सोने को तपाने से उसके दोष निकल जाते हैं, उसी प्रकार प्राणायाम से जलकर इन्द्रियों के दोष नष्ट हो जाते हैं। चिन्ता, भय, इच्छा, असंतोष, ईर्ष्या, राग, द्वेष, अवसाद आदि की वृत्तियों से यदि व्यक्ति का मन ग्रसित हो जाएगा, तो मन का संतुलन तो बिगड़ेगा ही, साथ ही व्यक्ति तनावग्रस्त भी होगा। तनाव के निवारण के लिए मन के आवेगों का निवारण करना आवश्यक है, जो कि प्राणायाम के द्वारा सम्भव है। प्राणायाम में श्वास-प्रश्वास-क्रिया को क्रमबद्ध, तालबद्ध और लयबद्ध बनाया जाता है। मन और श्वासतंत्र का परस्पर आंतरिक रूप से संबंध है। हेमचंद्राचार्य के योगशास्त्र में भी प्राणायाम का उल्लेख मिलता है। योगशास्त्र में मन और श्वास का संबंध बताते हुए कहा हैजहाँ मन है, वहाँ पवन अर्थात (श्वास-प्रवास) है और जहाँ पवन है, वहाँ मन है। 355 जब मन अशांत या तनावग्रस्त होता है, तो सांस भी अनियमित, झटकेदार आवाज करने वाली, उथली और वक्ष के ऊपरी भाग तक ही सीमित रह जाती है। जब मन शांत और तनावमुक्त होता है, तो श्वास धीमी, गहरी और लयबद्ध हो जाती है और शरीर के मध्यभाग तक प्रभाव डालती है। मन और श्वास में एक प्रकार का सहसंबंध है। श्वास-प्रश्वास को लयबद्ध और धीमा तथा गहरा करने पर मन का तनाव शिथिल होता है और श्वास-प्रश्वास के असंतुलित होने पर मन तनावग्रस्त हो जाता है। इसी प्रकार, मन को शांत बनाकर श्वास-प्रश्वास को नियंत्रित किया जा सकता है, साथ ही, श्वास-प्रश्वास को शिथिल करके अपने मन को शांत एवं तनावमुक्त . किया जा सकता है। 354 54. अमृतनादोष, श्लोक -7 359. योगशास्त्र (हेमचन्दाचार्य), पंचम प्रकाश, गाथा-2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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