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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
दूसरा है आम्रकुब्जासन इस आसन में भी पूरा शरीर तो पैरों के पंजों पर रखना पड़ता है, किन्तु घुटने कुछ टेढ़े रखने होते हैं, शेष शरीर का सम्पूर्ण भाग सीधा रखना पड़ता है।
आचार्य हरिभद्रसूरि के जैन योगशतक के योगविंशिका आदि ग्रन्थों में योग के भेदों में ठाण (स्थान) का अर्थ आसन शब्द से लिया है। इसमें पद्मासन, पर्यंकासन, कायोत्सर्ग आदि का समावेश है । 351
प्राणायाम
योग के छः अंग कहे गये हैं। उनमें से एक प्राणायाम भी है । योगचूड़ामणि उपनिषद् में इन छः अंगों के नाम इस प्रकार हैं- आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि | 352
प्राणायाम योग की ही एक विधि है । प्राणायाम से प्राण-शक्ति सम्प्रेरित होकर शरीर के अंग-प्रत्यंगों में फैलती है और उन्हें स्वस्थ एवं बलवान् बनाती है। 'आसन-प्राणायाम' नामक पुस्तक में लिखा है कि यदि विधिपूर्वक प्राणायाम किया जाए, तो तनाव से उत्पन्न अवसाद आवेश, आत्म-हीनता और उन्माद जैसे मनोविकारों से मुक्ति मिलती है। प्राणायाम की विधि इन मनोविकारों के उपचार में भी प्रयुक्त होती है । 33
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वर्तमान युग में तनाव से मुक्ति के लिये व्यक्ति दो वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। पहली नींद की गोलियां और दूसरे, मादक - द्रव्य । कालान्तर में, इन वस्तुओं का सेवन व्यक्ति की आदत बन जाती है और इनसे न केवल व्यक्ति के व्यवहार में विकृति आ जाती है, वरन् उसके शरीर और मन दोनों की शक्तियों का अपव्यय भी होता है । प्राणायाम प्राण प्रवाह को क्रियाशील बनाने की प्रक्रिया है, जो शरीर और मन की - शक्तियों को प्रबल बनाती है। प्राणायाम मनोबल को बढ़ाकर मनोविकारों का निवारण करता है।
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इन्द्रियों पर मन का नियंत्रण आवश्यक है । मन विकारग्रस्त होगा तो इन्द्रियों की चंचलता बढ़ेगी । इन्द्रियाँ विकारग्रस्त होकर अनियंत्रित हो जाएं, तो व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है । प्राणायाम से अगर मनोविकारों का ही निवारण कर लिया जाए, तो व्यक्ति न तो मादक -
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दशाश्रुतंस्कंध, बही सातवी दशा, मधुकरमुनि, पृ. 65 जैन योग ग्रंथ चतुष्टय, योग-विशिका, सूत्र, 2 पृ. 267 योगचूड़ामणि उपनिषद्, गाथा -2
आसन-प्राणायाम से आधि व्याधि निवारण, पृ. 161
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