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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
बाँए पैर को दाहिनी पिंडली के नीचे और दाहिने पैर का पंजा बाई पिंडली के नीचे लगाकर बैठना सुखासन कहलाता है। मेरुदण्ड सीधा रखें। श्वास-प्रश्वास सहज और दीर्घ रहेगा।
समय – एक मिनट से धीरे-धीरे सुविधानुसार बढ़ाएँ। ..
लाभ - कामशक्ति-विजय, चित्तवृत्ति-निरोध, वीर्य-शद्धि, शक्ति-जागरण, सुषुम्ना में प्राण का संचार होने से व्यक्ति ऊर्ध्वरेता बनता
2. स्वस्तिकासन -
भारतीय संस्कृति में स्वस्तिकासन को शुभ चिह्न माना गया है। जैन-परम्परा में अष्ट मंगलों में यह भी एक है। यह आसन करते समय शरीर की आकृति स्वस्तिक जैसी हो जाती है, इसलिए इसे स्वस्तिकासन कहा गया है।
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विधि - आसन पर स्थिरता से दोनों पैरों को मोड़कर बैठें। दाहिने पैर के पंजे को बाएं घुटने और जंघा के बीच इस प्रकार स्थापित करें कि
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