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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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पंजे का तलवा जंघा को स्पर्श करे। दाहिने पैर को उठाकर बाईं पिंडली और साथल के बीच जमाएँ। मेरुदण्ड सीधा रखें। बाएं हाथ की हथेली को नाभि के पास रखें, फिर दाहिने हाथ को उसके ऊपर स्थापित करें। यह ब्रह्ममुद्रा कहलाती है। समय और श्वास-प्रश्वास - इस आसन में लम्बे समय तक ठहरा जा सकता है। तीन घण्टे तक एक ही आसन में बैठना से आसन-सिद्धि कहलाता है। लाभ - लम्बे समय तक सुखपूर्वक बैठा जा सकता है। मन शांत और स्थिर, मेरुदण्ड पुष्ट और वायुरोग की निवृत्ति होती है। 3. पद्मासन - .
पद्मासन ध्यान-आसनों में आता है। साधना की दृष्टि से इसका विशेष महत्व है। सिद्धासन और पद्मासन ऐसे आसन हैं, जिनमें मेरुदण्ड स्वयं सीधा रहता है। इस आसन में पैर कमल के पत्तों की तरह लगते हैं, इसलिए इसे पद्मासन कहा गया है। पद्मासन की मुद्रा में अनेक आसन किये जाते हैं, जिन्हें स्वतंत्र आसनों के रूप में भी स्वीकार किया गया है, जैसे- बद्धपद्मासन, योगमुद्रा, उत्थित पद्मासन, तुलासन, कुक्कुटासन, गर्भासन इत्यादि।
विधि - आसन पर पैर फैलाकर बैठे। दाहिने पैर को घटने से मोड़कर इस प्रकार बाई साथल पर रखें कि हाथों की मुद्रा चित्र की तरह ब्रह्म । मुद्रा में रखी जा सके है। एड़ी नाभि के पास के हिस्से की साथल पर इस प्रकार स्थापित करें, ताकि एड़ी नाभि को स्पर्श करे। हथेलियां आकाश की ओर इस प्रकार खुली रखें कि अंगूठे और तर्जनी के अगले पौर मिले रहें। शेष अंगुलियां परस्पर मिली हुई स्थिर रखें। गर्दन सीधी
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