SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 171 दशाश्रुतस्कंधसूत्र में भी अनेक प्रकार के आसनों का वर्णन है, जिनकी आगे व्याख्या की गई है। 39 शरीर के स्थिर होने पर मन भी शांत होता है, क्योंकि मन का शरीर के साथ आंतरिक संबंध होने के कारण शरीर के स्थिर होने पर मन स्थिर हो जाता है। मेरूदण्ड के सीधे दण्डवत् होने से प्राण-शक्ति को ऊपर उठने की प्रेरणा मिलती है। जब प्राण मेरूदण्ड में ऊपर की ओर गति करता है, तब मन केवल स्थिर, शांत या तनावमुक्त ही नहीं होता, वरन् चेतना का एक उच्च स्तर प्राप्त कर लेता है। इससे व्यक्ति की संयमन की शक्ति अत्यधिक बढ़ जाती है। आसन शारीरिकस्वास्थ्य, मानसिक-शांति, तनावमुक्त जीवन एवं आध्यात्मिक विकास के लिए उपयुक्त भूमिका का निर्माण करते हैं। आसन अस्वस्थ व्यक्ति के लिए तो उपयोगी हैं ही, वे स्वस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक भी हैं। स्वस्थ व्यक्ति आसन से मानसिक प्रसन्नता को पाने के साथ-साथ तनावमुक्त हो जाता है। योगासन एवं व्यायाम शरीर में इधर-उधर जमे हुए मल को, जो शारीरिक तनाव का कारण है, उसे दूर करते हैं। इससे हमारा मन बेहतर रीति से कार्य करने लगता है। शरीर की सक्रियता एवं स्वस्थता को बनाए रखकर ही साधना के परिणामों को प्राप्त कर सकते हैं, अर्थात् तनाव से मुक्त हो सकता हैं। देश, काल और समाज की तनावपूर्ण परिस्थितियों से गुजरते हुए व्यक्ति योगासन और व्यायाम से तनावमुक्त जीवन जी सकता है। शारीरिक, मानसिकपीड़ाओं से ग्रस्त कुछ लोग योगासन और व्यायाम की ओर प्रवृत्त होते हैं। यौगिक शारीरिक क्रियाएँ शरीर और मन दोनों को स्वस्थ बनाती हैं, मन प्रसन्न और चित्त शान्त होने लगता है। 10 आचार्य भगवान देव ने अपनी पुस्तक 'योग द्वारा रोग निवारण में लिखा है- "आत्मा से साक्षात्कार के लिए योग वैज्ञानिक-कला है।" आत्मा से साक्षात्कार तब होता है, जब व्यक्ति ध्यान के अंतिम चरण को पार कर ले, अर्थात् मन की चंचलता को समाप्त कर दे और यह तभी सम्भव है, जब योग द्वारा शरीर और मन तनावों से मुक्त हो।. 339 340 दशाश्रुतस्कंध - सातवीं दशा 2. तनावमुक्त कैसे रहें - एम.के.गुप्ता 341. "योग द्वारा रोग निवारण- आचार्य भगवान देव पृ.12 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy