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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 167 होता है, या हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। इसके कारण मस्तिष्काघात भी हो सकता है और हृदयाघात भी। मन अगर तनावग्रस्त है, तो शरीर भी तनावग्रस्त हो जाता है और फिर शरीर को कई बीमारियाँ घेर लेती हैं। जब शारीरिक-सन्तुलन भंग होता है, तब व्यक्ति स्वभावतः तनाव से ग्रस्त हो जाता है। शारीरिक तनावों के कारण छोटी आंत और बड़ी आंत में सिकुड़न पैदा हो जाती है। तनाव का शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। प्रकृति ने स्वयं शरीर को रोगों से लड़ने की ताकत दी है, तनाव उस ताकत को कमजोर करता है। ___ "पाश्चात्य-चिंतकों चार्ल्सवर्थ और नाथन के अनुसार तनाव के परिणामस्वरूप व्यक्ति की निम्नलिखित शारीरिक स्थितियाँ देखी जाती हैं : 1. मन्द पाचन क्रिया - तनाव के कारण पाचन क्रिया मन्द होने से रक्त का प्रवाह मांसपेशियों तथा मस्तिष्क की ओर बढ़ने लगता है, जो अपच की स्थिति से भी ज्यादा खतरनाक होता है। 2. श्वसन-क्रिया की तीव्रता - तनाव की स्थिति में श्वास की गति तेज हो जाती है, क्योंकि मांसपेशियों को अधिक ऑक्सीजन की जरूरत होती है। 3. . हृदय की धड़कन का बढ़ना - तनाव के कारण हृदय की धड़कन भी बढ़ जाती है, साथ ही रक्तचाप भी बढ़ता है। 4. पसीना आना - तनाव की स्थिति में व्यक्ति के शरीर से अधिक मात्रा में पसीना आने लगता है। 5... मांसपेशियों में कड़ापन – तनाव के कारण मांसपेशियाँ कड़ी हो जाती हैं। 6. रासायनिक प्रभाव - तनाव की स्थिति में रासायनिक पदार्थ रक्त में मिलकर उसका थक्का जमा देते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने भी इस संबंध में कहा है कि तनाव की निरन्तर स्थिति बने रहने पर शारीरिक-गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। इससे शरीर में स्थित दबाव-तंत्र निरन्तर सक्रिय रहता है।"334 333. "Edward A..Charlesworth and Ronald G. Nathan, strees management, London. Page 4 महापत -पेक्षाध्यान: कायोत्सर्ग आचार्य 12 334 महाल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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