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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
का इलाज होगा वह निष्प्रभावी ही होगा।"331 शरीर और मन- दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
यं तो अंग्रेजी में कहा गया है- Sound mind in a sound body, अर्थात् स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर में ही होता है। इसका तात्पर्य यही है कि यदि आपका शरीर रोगी होगा, तो मन भी बैचेन रहेगा और मन बैचेन (तनावग्रस्त) होगा, तो शरीर रोगी होगा। आज अनेक बीमारियाँ जैसे- रक्तशर्करा, उच्चरक्तचाप, हृदयघात आदि तनाव से ही उत्पन्न । होती हैं। शरीर की अस्वस्थता का प्रभाव मन पर पड़ता है, किन्तु साथ ही यह भी सत्य है कि मन के तनावपूर्ण होने पर उसका प्रभावः शरीर पर भी पड़ता है। मन स्वस्थ, तो तन स्वस्थ। मन और तन की चिकित्सा एक-दूसरे से निरपेक्ष होकर सम्भव नहीं है। हमारे मन की यह विशेषता है कि वह रोग पैदा भी कर सकता है और उन्हें दूर भी कर सकता है। अनेक स्थितियों में शारीरिक-स्वस्थता मन की स्थिति पर ही निर्भर करती है। तनावरहित मन ही व्यक्ति को निरोगी बनाता है। तनावों का सीधा असर पहले हमारे शरीर पर पड़ता है। तनाव के कारण मन की शान्ति समाप्त हो जाती है, फलतः आँखों की देखने की क्षमता क्षीण होने लगती है, स्मरणशक्ति भी कमजोर हो जाती है। तनाव के चलते ही व्यक्ति हकलाकर बोलने लगता है, घबराहट उसकी आदत बन जाती है। उसके हाथ-पांव पर सूजन होने लगती है, हृदय की धड़कन कभी बहुत कम और कभी बहुत ज्यादा होने लगती है। हमारे पाचन- तंत्र पर भी हमारे मानसिक तनावों का दुष्प्रभाव पड़ता है। तनावग्रस्त व्यक्ति की भोजन में भी रुचि नहीं होती है। इस प्रकार, वह शारीरिक- दृष्टि से कमजोर हो जाता हैं। तनाव जिस मार्ग से गुजरता है, उसके बीच बीमारियों के कई पायदान बिछे रहते हैं, जैसे- अवसाद, रक्तचाप, मधुमेह, हृदयाघात आदि। 2 आज कल आम तौर पर दो बीमारियां बहुतायत से देखने को मिलती हैं- 1. हृदयाघात और 2. रक्तचाप । इन दोनों बीमारियों का मूल कारण तनाव ही है। जब कोई बात या घटना असहनीय होती है, तब व्यक्ति अपने मन को तनावग्रस्त बना लेता है, फलतः, वह हृदयाघात या रक्तचाप से ग्रस्त हो जाता है। रक्तचाप जब भी कम या ज्यादा होता है, तब उसका प्रभाव या तो हमारे हृदय पर
331. चिंता, क्रोध और तनावमुक्ति के सरल उपाय, श्री ललितप्रभ सागर, पृ.11 332. "कैसे पाए मन की शान्ति", श्री चन्द्रप्रभ, पृ. 29
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