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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
मन से आचरण करता है, भाषण करता है, उसका दुःख वैसे ही अनुगमन करता है, जैसे रथ का पहिया घोड़े के पैर का अनुगमन करता है 328,, और जो स्वच्छ मन से भाषण एवं आचरण करता है, उसका सुख वैसे ही अनुगमन करता है, जैसे साथ नही छोड़ने वाली छाया । 329 तीसरे अध्याय में हम इसका विस्तृत विवेचन कर चुके हैं। उपर्युक्त विवेचना से यही सिद्ध होता है कि सभी आचार - दर्शनों ने एवं मनोवैज्ञानिक`विचारकों ने मन को ही तनावों की उत्पत्ति का और तनावों से मुक्ति का प्रबलतम कारण माना है। कहते हैं कि नदी का प्रवाह रोकना सम्भव है, किन्तु मन पर नियंत्रण रखना कठिन है, लेकिन सतत अभ्यास और उचित साधना द्वारा इसमें सफलता प्राप्त की जा सकती है। कुछ लोग नये साधकों को मन को वश में करने के लिए ध्यान की विविध प्रक्रियाओं को अपनाने की सलाह देते हैं, लेकिन जिन लोगों का मन बहुत अधिक चंचल और व्याकुल होता है, उन्हें ध्यान की ये प्रक्रियाएँ - कठिन लगती हैं। उन्हें तो तनाव प्रबंधन की सरल विधियाँ अपनाने की सलाह दी जाना चाहिए, जिससे साधक सहज तनावमुक्त हो सके। मैं यहाँ तनाव प्रबंधन की भी कुछ सरल विधियाँ दी जा रही है, जिन्हें अपनाने से सम्यक् रूप से तनाव - प्रबंधन सम्भव हो सकता हैं। ये. विधियाँ निम्न है:
तनाव - प्रबंधन की सरल विधियाँ
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1. शारीरिक विधियाँ
अ. शरीर शुद्धि की क्रियाएँ, ब. योगासन और व्यायाम, स. प्राणायाम (श्वास-प्रश्वास का संतुलन), द. प्रेक्षा- ध्यान और अनुप्रेक्षा
ई. कायोत्सर्ग ।
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2. भोजन संबंधी विधियाँ
3. मानसिक - विधियाँ
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अ. एकाग्रता, ब. योजनाबद्ध चिन्तन, स. सकारात्मक सोच । 4. मनोवैज्ञानिक - विधियाँ 330
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धम्मपद- 1
धम्मपद - 2
Gates and others - Educational Psychology, Page-692.
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