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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
जिसका इन तीनों योगों पर नियंत्रण हो, वह योगी होता है। योगी ही तनावमुक्त अवस्था को प्राप्त करता है। शुक्ललेश्या वाला व्यक्ति सदैव स्वधर्म एवं स्वस्वरूप में निमग्न रहता है। पक्षपात न करना, भोगों की आकांक्षा न करना, सबमें समदर्शी रहना, राग-द्वेष तथा ममत्व से दूर रहना शुक्ललेश्या के लक्षण हैं।26 जैनदर्शन के अनुसार, तनाव का मूल कारण राग-द्वेष हैं। इस लेश्या वाला व्यक्ति राग-द्वेष से पूर्णतः मुक्त रहता है। जिसने तनाव-उत्पत्ति के मूल हेतुओं का क्षय कर दिया, वह पूर्णतः तनावमुक्त होता है और उसकी लेश्या शुक्ललेश्या होती है।
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325 उत्तराध्ययनसूत्र - 34/31-32 326 गोम्मटसार जीवकाण्ड - 517
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