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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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पहुंचाने से भी नहीं चूकता है। उसके ऐसे व्यक्तित्व के कारण दूसरे व्यक्ति का उस पर से विश्वास उठ जाता है। ऐसा व्यक्ति अविश्वास
और भय से सदैव तनावग्रस्त रहता है, जो आज के युग की सबसे बड़ी समस्या है। अविश्वास से ही भय उत्पन्न होता है और भय से तनाव। 'मन्दता, बुद्धिहीनता, अज्ञान, विषय-लोलुपता, अविश्वास तथा भय- ये नील-लेश्या वाले व्यक्ति के लक्षण हैं। 15 इन लक्षणों से युक्त व्यक्ति तनावपूर्ण स्थिति में होता है। 3. कापोत-लेश्या -
यह मनोवृत्ति भी दूषित है। इस मनोवृत्ति में प्राणी का व्यवहार मन, वचन और कर्म से एकरूप नही होता है। उसकी करनी और कथनी भिन्न-भिन्न होती है।16
यद्यपि पूर्व की दो लेश्याओं की अपेक्षा इसकी मनोवृत्ति कम दूषित होती है, लेकिन अपने हित के लिए दूसरे का अहित करने में ऐसे व्यक्ति को तनिक भी संकोच नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति ईर्ष्यालु प्रवृत्ति का होता है और ईर्ष्या के कारण तनावग्रस्त रहता है, क्योंकि तनाव में ईर्ष्या का सबसे बड़ा योगदान होता है। जो व्यक्ति वाणी से वक्र है, कपटी है, सरलता से रहित है, स्वदोष छिपाने वाला है, मत्सरी है, वह अपने इन दुर्गुणों के कारण कापोत-लेश्या वाला होता है।
वचन से किसी को अपशब्द कहना, दूसरों की गुप्त बात प्रकट करना, काया से किसी को नुकसान पहुंचाना, वस्तुओं की तोड़-फोड़ में आनन्द लेना, मन में मत्सरी-भाव रखना, मन पर नियंत्रण नहीं होना - ये कापोत-लेश्या वाले व्यक्ति के प्रमुख लक्षण हैं। ये सब भी तनाव के प्रमुख कारणों में ही आते हैं, अतः ऐसा व्यक्ति भी तनावग्रस्त रहता ही है, चाहे उन कारणों की तीव्रता कुछ कम हो। ऐसा व्यक्ति अपने सम्पर्क में रहे हुए दूसरे व्यक्ति को भी प्रलोभन बताकर और उसकी इच्छाओं को उत्तेजित कर तनावग्रस्त बना देता है। "जल्दी से रुष्ट हो जाना, दूसरों की निन्दा करना, दोष लगाना, अति शोकाकुल होना, अत्यन्त भयभीत होना- ये गोम्मटसार के अनुसार कापोत-लेश्या के लक्षण हैं।318
315 गोम्मटसार, जीवकाण्ड -510 १० जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग 1, डॉ.सागरमल जैन, पृ.515
उत्तराध्ययनसूत्र - 34/25-26 गोम्मटसार, जीवकाण्ड, 512
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