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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
इसलिए भगवान महावीर ने उत्तराध्ययन सूत्र में स्पष्ट रूप से कहा था, कि “वित्तेण ताणं ण लभे पमत्तें" अर्थात् आसक्त-चित्त धन के द्वारा त्राण अर्थात् शांति को प्राप्त नहीं होता है। संग्रह की वृत्ति अशांति और तनाव के हेतु ही है। इससे उत्पन्न लोभजन्य शोषण की वृत्ति व्यक्तियों
और समाज के मध्य तनाव को उत्पन्न करती है, अविश्वास और भय को जन्म देती है। उससे समाज दो वर्गों में बट जाता है- शोषक और शोषित। ध्यान रहे गरीब व्यक्ति में भी इर्षा का भाव या धन की चाह ही तनाव उत्पन्न होने का मूल कारण है, तनाव उसकी विपन्नता के कारण उत्पन्न नहीं होते हैं, अपितु उसकी संग्रह-वृत्ति या परिग्रह की वृत्ति के कारण उत्पन्न होते हैं। पारिवारिक जीवन में असंतुलन और तनाव-ग्रस्तता का मुख्य कारण भी कहीं न कहीं व्यक्ति की दूसरों पर अधिकार भावना के कारण होता है। धार्मिक जीवन में तनाव उत्पन्न होने का कारण भी कहीं न कहीं धर्म की सम्यग् समझ का अभाव होता है। अपने धर्म की सत्यता के प्रति अत्याधिक मोह और अन्य धर्मों के प्रति हीनभावना ही धार्मिक जीवन में तनावों को उत्पन्न करती है। वस्तुतः यहाँ भी हमारी चित्तवृत्तियाँ ही तनावों को जन्म देती है। चित्तवृत्ति का संयमन और मन को विकल्पों से मुक्त रखने के प्रयत्न ही व्यक्ति को तनावों से मुक्त बना सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने तनावों का एक कारण शरीर या इन्द्रियों की माँगों को नकारना भी माना है। वस्तुतः तनाव का कारण इन्द्रियों का ब्राह्य जगत में स्थित अपने विषयों से सम्पर्क नहीं है। तनावों का कारण है- व्यक्ति की भोगाकांक्षा या वस्तु के प्रति ममत्व का आरोपण या उस पर स्वामित्व की भावना है। वस्तुतः यदि संसार में रहकर भी यदि व्यक्ति की जीवन-दृष्टि अनासक्त बने तो वह तनाव मुक्त रह सकता है। कहा भी है
बाजार से निकला हूँ, मगर खरीददार नहीं हूँ। दुनियाँ में हूँ, मगर दुनियाँ का तलबगार नहीं हूँ।।
अन्त में हमें यह भी देखना होगा कि व्यक्ति तनावों से मुक्त कैसे हो सकता है? इसके लिए अनासक्ति और अभय की साधना आवश्यक है। जैन दर्शन में तनाव मुक्ति की प्रक्रिया को समझाते हुए इन्द्रियविजय, कषायविजय, लेश्या परिवर्तन अर्थात् चित्त-वृत्ति का सम्यग् दिशा में नियोजन आवश्यक माना गया है। जब तक व्यक्ति इनके माध्यम से तनाव मुक्त नहीं होगा, तब तक वह समाज को और मानव जाति को भी तनाव मुक्त नहीं बना सकेगा। आंचाराग सूत्र में कहा गया
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