________________
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
15
है कि जो व्यक्ति स्वयं तनावग्रस्त होता है वही दूसरों को भी तनावग्रस्त बनाता है। अतः देश और समाज को तनाव मुक्त बनाने के लिए पहले व्यक्ति को तनाव मुक्त जीवन जीने की कला सीखना होगी, जो अनासक्त जीवन शैली के द्वारा ही प्राप्त होगी।
डॉ. तृप्ति जैन का यह ग्रन्थ युवा पीढ़ी के लिए एक मार्गदर्शक बनेगा, यह अपेक्षा रखी जा सकती है, क्योंकि आज की युवा पीढ़ी ही तनावों से सर्वाधिक ग्रस्त है। यह ग्रन्थ जन-जन के लिए निश्चित ही सम्यक् जीवन शैली का मार्गदर्शक है, मात्र बुद्धि-विलास नहीं है। इसका मूल उदेश्य ही सम्यक् जीवन शैली का मार्गदर्शन न होकर एक युगीन समस्याओं के समाधान का सार्थक प्रयत्न है। ग्रन्थ की भाषा सरल है। आवश्यकता के अनुरूप क्वचित पुनरावृत्ति देखी जाती है, फिर भी वह जन सामान्य के लिए विषय को बोधगम्य बनाने की दृष्टि से आवश्यक ही प्रतीत होती है।
मैं यह अपेक्षा रखता हूँ कि विद्वत् जगत् और जन सामान्यदोनों में ही इस कृति का स्वागत होगा और यह कृत्ति मानवजाति को निर्भय और तनाव मुक्त बनाने में सफल सिद्ध होगी । डॉ. तृप्ति जैन से भी यह अपेक्षा रखी जा सकती है कि वे भविष्य में भी ऐसी सुबोध कृतियों की रचना कर मानवजाति की ज्वलंत समस्याओं के निराकरण का प्रयत्न करती रहेगी ।
प्रो. सागरमल जैन प्राच्य विद्यापीठ, भाजापुर (म.प्र.)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org