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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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1. कृष्ण-लेश्या - इस अशुभतम मनोभाव से युक्त व्यक्तित्व के निम्न लक्षण पाए जाते हैं, जो उसे तनावयुक्त बनाते हैं.98 - 1. व्यक्ति अपनी शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक क्रियाओं पर
नियन्त्रण नहीं कर पाता है। 2. भोग-विलास में आसक्त हो, वह उनकी पूर्ति के लिए हिंसा,
असत्य, चोरी आदि दुष्कर्म करता है। .. 3. अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का बड़े-से-बड़ा अहित करने में
वह संकोच नहीं करता। ऐसा व्यक्ति क्षण भर के लिए भी शांति
का अनुभव नहीं करता है। 2. नील-लेश्या - 3. यह मनोभाव पहले की अपेक्षा कुछ ठीक होता है, लेकिन होता
अशुभ ही है। उत्तराध्ययन के अनुसार ऐसा व्यक्ति ईर्ष्यालु, ___ असहिष्णु, असंयमी, अज्ञानी, कपटी, निर्लज्ज, लम्पट, द्वेष-बुद्धि
से युक्त, रसलोलुप एवं प्रमादी होता है। 99 3. कपोत-लेश्या -
, यह भी अशुभ मनोवृत्ति ही है। इस मनोभाव वाले के निम्न लक्षण पाए जाते हैं - 1. व्यक्ति का व्यवहार मन, वचन और कर्म से एकरूप नहीं होता। 2. उसकी करनी और कथनी भिन्न होती है। 3. उसके मन में कपट और अहंकार होता है। 4. अपने हित के लिए वह दूसरों का अहित करने वाला होता है। 4. तेजो-लेश्या
यहाँ मनोदशा पवित्र होती है। उत्तराध्ययन में इस लेश्या के लक्षण बताते हुए लिखा है - इस मनोभूमि में स्थित प्राणी पवित्र आचरणवाला, नम्र, धैर्यवान्, निष्कपट, आकांक्षारहित, विनीत, संयमी एवं
298 उत्तराध्ययनसूत्र - 34/21-22 299 उत्तराध्ययनसंत्र - 4/23-24
उत्तराध्ययनसूत्र - 34/25-26
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