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________________ 148 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति से साफ हो जाता है, उसी प्रकार शीघ्रता से दूर हो जाने वाला लोभ तदजन्य तनाव को भी शीघ्रता से दूर कर देता है। इस प्रकार, लोभ-कषाय भी तनाव का ही कारण है। लोभ की वृत्ति आने पर वह बढ़ती ही जाती है। लोभ की यह मनोवृत्ति मन को मलिन कर देती है, बुद्धि को नष्ट कर देती है और तनाव उत्पन्न करती है, अतः तनावमुक्ति के लिए लोभ-कषाय का त्याग करना आवश्यक है। इच्छाएं और आकांक्षाएं - तनाव का मुख्य कारण राग-द्वेष हैं। इन राग-द्वेष के भावों से ही व्यक्ति में इच्छाओं या आकांक्षाओं का जन्म होता है। वस्तुतः, अभिलाषा, तृष्णा, चाह, कामना आदि इच्छा के ही पर्यायवाची शब्द हैं, किन्तु मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इनमें मामूली सा अंतर हो सकता है; फिर भी भारतीय-दर्शन में इनमें एक क्रम माना जा सकता है। , तनाव के कारणों में इच्छाओं व आकांक्षाओं का प्रमुख स्थान है। जैनधर्म के अनुसार, सम्पूर्ण जगत् में जो कायिक, वाचिक और मानसिक-क्रियाएं होती हैं, वे काम-भोगों की अभिलाषा से उत्पन्न होती हैं। 250 अंगुत्तरनिकाय में लिखा है- भूतकाल, भविष्यकाल और वर्तमानकाल के विषयों के सम्बन्ध में जो इच्छा है, वही कर्मों (तनाव) की उत्पत्ति का कारण है। आचारांग में लिखा है कि जिसकी कामनाएँ (इच्छाएँ) तीव्र होती हैं, वह मृत्यु से ग्रस्त होता है और जो मृत्यु से ग्रस्त होता है, वह शाश्वत सुख से दूर रहता है। यहाँ मृत्यु से तात्पर्य दुःख, जन्म-मरण या संसार-भ्रमण से है और शाश्वत सुख का अर्थ है- मोक्ष, अर्थात् पूर्णतः तनावमुक्ति। ___ कार्तिकेयानुप्रेक्षा में लिखा है- "संकप्पमओ जीओ, सुखदुक्खमयं हवेइ संकप्पो", अर्थात् जीव संकल्पमय है और संकल्प (इच्छा) सुख-दुःखात्मक है। जब हम इच्छाओं और आकांक्षाओं को तनावग्रस्तता का हेतु बताते हैं, तो हमारे सामने एक प्रश्न खड़ा होता है कि इच्छाएँ और आकांक्षाएँ व्यक्ति को कैसे तनावग्रस्त बनाती हैं। इन्द्रियों के बहिर्मुख होने से जीव की रुचि बाह्य विषयों में होती है और 290 291 292 उत्तराध्ययनसूत्र- 32/19 अंगुत्तरनिकाय- 3/109 गुरू से कामा, तओ से मारस्स अंतो, जओ से मारस्स अंतो, तओ से दूरे। - आचारांगसूत्र-1/5/1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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