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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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मन की यह स्थिति तनाव ही है। अतः, लोभ-कषाय भी तनाव का ही कारण है। लोभ भी चार प्रकार का कहा गया है - 1. अनंतानुबंधी-लोभ, 2. अप्रत्याख्यानी-लोभ, 3. प्रत्याख्यानी-लोभ,
4. संज्वलन लोभ
अनन्तानुबन्धी लोभ - इस लोभ को किरमिची के रंग की उपमा दी गई है। वस्त्र फट जाता है, पर किसी भी उपाय या प्रयत्न से उसका किरमिची या पक्का रंग नहीं छूटता, उसी प्रकार अत्यधिक लोभी या तीव्रतम लोभ की इच्छा रखने वाला व्यक्ति किसी भी उपाय से अपनी लोभ की मनोवृत्ति को नहीं छोड़ता। ऐसी तीव्रतम लोभ की मनोवृत्ति लोभी व्यक्ति को इतना अधिक तनावग्रस्त कर देती है कि वह चाहकर भी तनाव से मुक्त नहीं हो पाता, क्योंकि लोभ उसे सदैव तनावग्रस्त बनाए रखता है।
अप्रत्याख्यानी लोभ - गाड़ी के पहिए के औगन के समान मुश्किल से छूटने वाला लोभ अप्रत्याख्यानी-लोभ है। ऐसा लोभी व्यक्ति कोई चोट पड़ने के बाद ही इस मनोवृत्ति को छोड़ता हैं। ऐसे व्यक्ति को कितना भी समझाया जाए, पर लोभ की चाह उसकी बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है और जब लोभ का परिणाम सामने आता है तब उसे लोभ के दुर्गुणों की अनुभूति होती है। इस प्रकार, जब लोभ से व्यक्ति को तनाव उत्पन्न होता है और जब उसे उस तनाव के मूल कारण (लोभ) का बोध होता है, तब वह व्यक्ति तनावमुक्ति की ओर अग्रसर होता है।
प्रत्याख्यानी-लोभ - इस लोभ को कीचड़ के धब्बे की उपमा दी गई है। जिस प्रकार प्रयत्न करने से कीचड़ साफ हो जाता है, उसी प्रकार दिन-रात मन को समझाने का प्रयत्न करते हुए जब व्यक्ति अपनी लोभवृत्ति छोड़ देता है तब वह प्रत्याख्यानी-लोभ के स्तर पर आ जाता है, अर्थात् उसको तनाव तो होता है, किन्तु प्रयास करने पर वह तनावमुक्त स्थिति को भी प्राप्त कर सकता है।
.. संज्वलन-लोभ - जो लोभ निमित्त मिलने पर पल भर में शांत हो जाए, या नष्ट हो जाए, वह संज्वलन-लोभ है। संज्वलन-लोभ को हल्दी के लेप की उपमा दी गई है। जिस प्रकार हल्दी का लेप शीघ्रता
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