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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति गिर पड़ता है, उसी प्रकार मद के वशीभूत व्यक्ति भी स्वयं की मानसिक-शांति एवं ज्ञान को नष्ट करता हुआ तनावग्रस्त हो जाता है । 'अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। 274 मान के वशीभूत व्यक्ति स्वार्थी हो जाता है। वह अपने फायदे के लिए दुष्कर्म करने से भी पीछे नहीं हटता । उसके मनोपटल पर स्वयं की प्रशंसा कैसे हो और दूसरों को नीचा कैसे दिखाया जाए- यही विचार चलते रहते हैं। जब व्यक्ति दूसरों से मिलने वाले आदर सम्मान और प्रशंसा से फूला नहीं समाता है, तो उसे स्वयं के कार्य पर गर्व होने लगता है और उसे दूसरों के सभी कार्य व्यर्थ लगने लगते हैं । सूत्रकृतांग में भी यही कहा गया है कि "अन्नं जणं पस्सति बिंबभूयं" अर्थात् अभिमानी अपने अहंकार में चूर होकर दूसरों को सदा बिंबभूत, अर्थात् परछाई के समान तुच्छ मानता है। 275 वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ व अन्य सभी को हीन समझने लगता है और इस स्तर पर उसका मन विचलित हो जाता है, अर्थात् तनावयुक्त हो जाता है। निम्न भय उसकी मानसिक-शांति को भंग कर देते हैं 1. कहीं कोई मुझसे सर्वश्रेष्ठ न हो जाए । 2. कहीं कोई मेरे अवगुणों को उजागर न कर दे। 3. मेरी ख्याति समाप्त न हो जाए । 4. कहीं कोई मेरे मान को ठेस न पहुंचा दे। उपर्युक्त भयों के कारण वह विचार करने लगता है कि ऐसा क्या किया जाए, जिससे अपनी मिथ्या प्रशंसा बनी रहे। वह अपने मान की रक्षा करने व भयमुक्ति हेतु दोहरा व्यवहार करता है, किन्तु वह इस बात से अनजान रहता है कि ऐसा व्यवहार उसके मिथ्या अहंकार का पोषण ही करेगा। मान- कषाय का पोषण जितना अधिक होगा, उसका तनाव का स्तर भी उतना ही बढ़ेगा। व्यक्ति अपनी मान-प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए दूसरों की निंदा करता है, अपनी गलती कभी भी स्वीकार नहीं करता है, उसके मस्तिष्क में हलचल मची रहती है, मन सदैव विचलित रहता है । ये सभी स्थितियाँ तनाव उत्पन्न करने वाली हैं और तनावयुक्त अवस्था में, मान से ग्रस्त वह व्यक्ति विनय, स्वाभिमान, सदाचार, ईमानदारी, सरलता आदि गुणों को भूल जाता है। मान - कषाययुक्त व्यक्ति की मनोवृत्तियाँ 274 सूत्रकृतांग बालजणो पगब्भई, - 1/10/20 275 सूत्रकृतांग - 1/13/14 141 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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