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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 139 1. जाति मद - जातियाँ चार हैं, जो मनुष्य के कर्म के आधार पर निर्मित हुई हैं, जैसे- अध्ययन-अध्यापन करनेवाला ब्राह्मण, सबकी रक्षा करने वाला क्षत्रिय, व्यापार करने वाला वैश्य एवं सबकी सेवा करने वाला शूद्र है। यह मात्र कार्यों के आधार पर किया गया विभाजन है, किन्तु मनुष्य ने इन वर्गों में उच्च एवं नीच की अवधारणा बना ली है। उच्च कहलाने वाली जाति में जन्म लेने पर उसका अहंकार करना जाति-मद है। कोई निम्न जाति का व्यक्ति, जैसे-शूद्र अगर उच्च जाति के अधीन न रहे, तो उच्च जाति वाले उसे अपना अपमान समझते हैं। 2. कुल-मद - जिस कुल में सुसंस्कार, सम्पन्नता, विशिष्टता होती है, वह कुल श्रेष्ठ कहलाता है। ऐसे कुल में जन्म लेने पर अहंकार करना कुल-मद कहलाता है। . 3. रूप-मद - शारीरिक-सौन्दर्य का अहंकार करना रूप-मद है। 4. बल-मद - अपने शौर्य या ताकत (शक्ति) का अहंकार करना बल-मद है। 5. श्रुत-मद - अपने ज्ञान का अहंकार करना ज्ञान या श्रुत-मद है। 6. तप-मद - अपनी तपस्या पर गर्व करना तप-मद है। 7. लाभ-मद - योग प्रबल होने पर व्यक्ति को पग-पग पर उपलब्धियाँ, ऋद्धियाँ या धन-वैभव मिलता रहता है, इन पर घमण्ड करना लाभ मद है। ' 8... ऐश्वर्य-मद - मैं अतुल वैभवसम्पन्न हूँ- ऐसा अभिमान ऐश्वर्य-मद कहलाता है।272 ... उपर्युक्त आठों मद व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करते हैं। इनसे व्यक्ति के मन में यह भय उत्पन्न होता है कि कहीं कोई उससे श्रेष्ठ न हो जाए। अपनी श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए व्यक्ति सदैव चिंतित रहता है। दूसरों की निन्दा करना, उन्हें नीचा दिखाना, स्वयं का गुणगान करना आदि अनुचित व्यवहार हैं। ऐसे घमण्ड में चूर व्यक्ति के समक्ष जब कोई उससे भी अधिक श्रेष्ठ व्यक्ति आ जाता है, तो उसे गहरा आघात पहुंचता है, जो उसे तनावग्रस्त बना देता है। 271 स्मवाओ, समवाय – 8.सू.-1 1. कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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