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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
प्रिय - परिजनों के प्रति मोह इतना प्रगाढ़ होता है कि वह अतिरागभाव के कारण उनके लिए सदैव चिंतित रहता है। उनके सुख के लिए या उनका वियोग न हो - इस भय से वह कई पापकर्म भी करता है, जो उसे तनावग्रस्त बना देते हैं ।
प्रत्याख्यानावरण कषाय
तनाव का वह स्तर, जहां बाह्य निमित्तों से उत्पन्न क्रोध, मान, माया आदि की प्रतिक्रियाओं को आन्तरिक एवं बाह्य- दोनों स्तरों पर रोका जा सकता है, प्रत्याख्यानावरण है। इसमें व्यक्ति पूर्ण रूप से तनाव से मुक्त नहीं होता, किन्तु तनाव को कम जरूर कर लेता है, क्योंकि प्रत्याख्यानावरण-कषाय में अनन्तानुबन्धी एवं अप्रत्याख्यानी की अपेक्षा से भी तीव्रता कम होती है। जिस कषाय के उदय से सर्वविरतिरूप प्रत्याख्यान प्राप्त नहीं होता, उसे प्रत्याख्यानावरण - कषाय कहते हैं। 'प्रत्याख्यानावरण–कषाय का उदय पूर्ण रूप से ऐन्द्रिक विषयभोगों से विरत नहीं होने देता । "
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तनाव का कारण भोग-उपभोग की इच्छाएं हैं। जब भोगासक्ति कम होगी, तो तनाव भी कम होगा। इसमें व्यक्ति परिस्थिति आने पर बाह्य व आंतरिक रूप से कषाय की प्रतिक्रियाओं को रोक लेता है, अर्थात् तनाव के कारणों व उससे उत्पन्न प्रतिक्रियाओं को तो रोक सकता है, किन्तु उनके उत्पन्न होने की स्थिति पर उसका पूर्ण नियन्त्रण नहीं होता है । 'कपिल के सत्य कथन को सुनकर जब राजा ने मनचाहा इनाम मांगने को कहा, तो कपिल ने लोभ - कषाय का उदय होने से पंचास सोने की मोहर लेकर पूरा राज्य तक मांग लेने का विचार कर लिया। तब चिंतन करते-करते बिचारों में परिवर्तन आया और लोभ का प्रत्याख्यान कर दिया। भोग की इच्छा को तनाव का कारण जानकर दीक्षित भी हो गया, किन्तु अंतःकरण में कषाय उद्वेलित करती रही ।
बाहुबली ने अपने भ्राता भरत को हराने, मारने के लिए हाथ उठाया, किन्तु चिंतन करते हुए क्रोध की प्रतिक्रिया को रोक लिया और पंचमुष्ठि लोच कर लिया। जिस मान की पूर्ति के लिए युद्ध कर रहे थे, क्रोध की अग्नि में जलते हुए भाई को हराकर ही शांत होना चाहते थे, वहीं क्रोध की प्रतिक्रिया को रोककर प्रत्याख्यानावरण क्रोध को क्षय
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कर्म-विज्ञान, भाग - 4, पृ. 132 विशेषावश्यक, गाथा - 2992
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