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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 14. जीविताशा जीवित रहने की जो इच्छा बनी रहे, वह जीविताशा है । जीवित रहने की यह इच्छा अन्तकाल तक बनी रहती है । जीवित रहने की यह इच्छा ही जीविताशा है। - लोभ का आधार इच्छा है और इच्छा या आकांक्षा ही तनाव की उत्पत्ति का कारण है । उपर्युक्त चार कषाय का विवेचन भगवतीसूत्र में इसी दृष्टि से किया है कि ये कषायों के विभिन्न रूप हैं, इनमें से किसी भी रूप को अपनाने से दुःख मिलता है और ये सभी तनाव - उत्पत्ति के कारक तत्त्व हैं। कर्मग्रन्थ में कषाय का स्वरूप कर्मग्रंथ में कषाय को चारित्रमोहनीय का भेद कहा है । चारित्रमोहनीय के दो भेद कषायमोहनीय व नोकषायमोहनीय हैं। उनमें से कषायमोहनीय के अनन्तानुबन्धी आदि सोलह और नोकषायमोहनीय के नौ भेद कहे गए हैं। 247 अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्वलन | इनके क्रोध, मान, माया और लोभ- ये चार-चार भेदों का विस्तार से विवेचन इसी अध्याय में पहले कर चुके हैं, अतः इनके विस्तार में न जाकर यहाँ हमें नौ कषायों की चर्चा करेंगे। 125 ! समवायांगसूत्र 248 विशेषावश्यकभाष्य 249 आदि में भी कषाय के चार प्रकार बताए हैं क्रोध, मान, माया और लोभ । ये चार प्रधान कंषाय हैं और इन प्रधान कषायों के सहचारी भाव अथवा उनकी सहयोगी मनोवृत्तियाँ नोकषाय कही जाती हैं। यह भी कह सकते हैं कि ये कषाय के कारण एवं परिणाम- दोनों हैं। नोकषाय से कषाय उत्पन्न होते हैं। कषाय की उत्पत्ति के कारण जिन नोकषाय को कहा गया है, वे. निम्न हैं 250_ - Jain Education International 1. हास्य- सुख की अभिव्यक्ति हास्य है। यह मान का कारण है। जब अहंकार बढ़ जाता है, तो दूसरों पर हँसी आती है और इस अहंकार से क्रोध भी उत्पन्न हो जाता है । 247 कर्मग्रंथ भाग - 1, मुनि श्री मिश्रीमलजी गाथा 17, 248 समवाओं, समवाय 4, सूत्र - 1 विशेषावश्यकभाष्य, गाथा - 2985 249 250 कर्मग्रंथ, भाग-1, गाथा 21-22 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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