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— जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति भगवतीसूत्र की अभयदेवसूरि की वृत्ति के अनुसार लोभ के पूर्वोक्त पयार्यवाची नामों की व्याख्या निम्नानुसार की गई है - 1. लोभ – मोहनीयकर्म के उदय से चित्त में उत्पन्न होने वाली संग्रह करने की वृत्ति लोभ है। 2. इच्छा - इष्ट की प्राप्ति की कामना, अभिलाषा या परद्रव्यों को पाने की चाह या भावना, इच्छा है। 44 3. मूर्छा - तीव्र संग्रह-वृत्ति मूर्छा कहलाती है, अथवा पदार्थ के संरक्षण में होने वाला अनुबंध या प्रकृष्ट मोहवृत्ति मूर्छा है।45. 4. कांक्षा - अप्राप्त पदार्थ की आशंसा, या जो नहीं है, भविष्य में उसे पाने की इच्छा कांक्षा है।246 5. गृद्धि - जो वस्तु प्राप्त हो गई है, उस पर आसक्ति या उसके अभिरक्षण की वृत्ति गृद्धि कहलाती है। 6. तृष्णा – प्राप्त पदार्थों का व्यय या वियोग न होने की इच्छा तृष्णा
7. भिध्या – इष्ट वस्तु के खो जाने का भय, या अमुक वस्तु कभी न खोए- ऐसी इच्छा भिध्या है। 8. अभिध्या - विषयों के प्रति होने वाली विरल एकाग्रता या निश्चय से डिग जाना अभिध्या है। 9. आशंसना - इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए दिया जाने वाला आशीर्वाद आशंसना है। 10. प्रार्थना – प्रार्थना करके मांगना, याचना करना अर्थात् इच्छित वस्तु के लिए याचना करना प्रार्थना है। 11. लालपनता - इष्ट वस्तु के न मिलने पर बार-बार प्रार्थना करना लालपनता है। 12. कामाशा - काम की इच्छा कामाशा है। 13. भोगाशा - कामाशा में शब्द एवं रूप की कामना होती है। गंध, रस और स्पर्श से युक्त पदार्थों को भोगने की इच्छा भोगाशा है।
अहं भंते। लोभे, इच्छा, मुच्छा, कांखा, गेही, तण्हा, विज्झा, अभिज्झा, आसासणया, पत्थणया,
लालप्पणया, कामासा, भोगासा, जीवियास, मरणासा, नंदिरागे....-भगवतीसूत्र, श.12, उ.5, सू.106 244 इच्छाभिलाषस्त्रैलोक्यविषयः । - तत्त्वार्थसूत्र भाष्यवृत्ति - 8/10 245 मूर्छा प्रकर्षप्राप्ता मोहवृद्धिः । - तत्त्वार्थसूत्र भाष्यवृत्ति - 8/10 246 भविष्यत्कालोपादानविषयाकांक्षा । ....... वही
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