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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 123 ___ मान के विभिन्न रूपों का विवेचन इसी अध्याय में पूर्व में कर चुके हैं। माया के विभिन्न रूप - भगवतीसूत्र में माया के पन्द्रह समानार्थक नाम दिए गए हैं।242 माया स्वयं को तो तनावग्रस्त करती ही है, इससे ज्यादा अधिक उस व्यक्ति को तनावग्रस्त बनाती है, जिसको ठगा गया है, या जिसके साथ माया की गई है, धोखा दिया गया है। माया के ये निम्न पन्द्रह नाम हैं, जो माया के ही रूप हैं और व्यक्ति को तनावग्रस्त करते हैं1. माया- कपटाचार। 2. उपधि - ठगने के उद्देश्य से व्यक्ति के निकट जाना। 3. निकृति - विश्वासघात करना। 4. वलय - वचन और व्यवहार में वलय के समान वक्रता रखना। 5. गहन - ठगने के लिए अत्यन्त गूढ़ भाषण करना। 6. न्यवम् - नीचता का आश्रय लेकर ठगना। 7. कल्क - हिंसादि पाप-भावों से ठगना। 8.. कुरूक - निन्दित व्यवहार करना। 9. दम्भ - शक्ति के अभाव में स्वयं को शक्तिमान मानना। 10. कूट - असत्य को सत्य बताना। 11. जिम्ह - ठगी के अभिप्राय से कुटिलता का आलम्बन लेना। 12. किल्विषि - माया से प्रेरित होकर किल्विषी जैसी निम्न प्रवृत्ति - करना। 13. अनाचरणता - ठगने के लिए अच्छा आचरण करना। 14. गूहनता - मुखौटा लगाकर ठगना.। 15. वंचनता - छल-प्रपंच करना। लोभ - लोभ का तनाव से क्या सम्बन्ध है, यह हम इस अध्याय के पूर्व में बता चुके हैं। यहाँ हम भगवतीसूत्र के आधार पर लोभ के विभिन्न रूपों की चर्चा करेंगे, जो भिन्न-भिन्न रूप में होकर व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करते हैं। 242 भगवतीसूत्र, श.12, उ.5. सू.4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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