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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
चंचलता और चंचलता का कारण है- कषाय- -वृत्तियां । कषाय-वृत्तियों के चार स्तर कहे गए हैं- अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्वलन | ये चार स्तर ही तनाव के भी स्तर हैं ।
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कषाय की चार वृत्तियाँ हैं - क्रोध (आवेश), मान (अहंकार), माया ( कपटवृत्ति) और लोभ । ये कषाय की वृत्तियाँ राग-द्वेष से उत्पन्न होती हैं और मन को विचलित कर देती हैं। कषायरूपी वृत्तियाँ चित्त को कैसे विचलित करती हैं- यह जानने से पूर्व हमें कषाय के प्रकारों को जानना होगा। स्थानांगसूत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि पापकर्म (तनाव) की उत्पत्ति के दो स्थान हैं- राग और द्वेष । राग से लोभ का और लोभ से माया का जन्म होता है, दूसरी ओर, द्वेष से क्रोध का और क्रोध से मान का जन्म होता है। 234
कषाय
राग
लोभ
माया
मान
वैसे क्रोध का निमित्त लोभ और मान भी होते हैं। अहंकार पर चोट पड़ने पर या लोभ की पूर्ति में बाधा होने पर भी क्रोध आता है। इसी प्रकार, मिथ्या अहंकार के पोषण हेतु भी मायाचार किया जाता है । सापेक्ष रूप से इन चारों में अन्तः सम्बन्ध है ।
अतः
राग-द्वेष तनाव के मूल कारण हैं और कषायें व्यक्ति की तनावयुक्त स्थिति में वृद्धि करती हैं। कषाय से युक्त व्यक्ति तनावग्रस्त होता है और तनावग्रस्त व्यक्ति की सम्यक् बुद्धि अर्थात् विवेकशक्ति नष्ट हो जाती है। वह तनावमुक्त होने के लिए भी कषाय की वृत्तियों का पोषण करने लगता है, तब व्यक्ति में कषाय की वृत्तियाँ अधिक बढ़ जाती हैं, तो ये कषाय की वृत्तियाँ मन को चंचल या अस्थिर बना देती हैं। मन की अस्थिरता तनाव का लक्षण है ।
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अ) स्थानांगसूत्र - 2/4
ब)
नि. चू-132 माया -लोभेहिंतो रागो भवति । कोह
द्वेष
क्रोध
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माणेहिंतो दोसो भवति ।।
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