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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
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कषाय-सिद्धान्त में तनाव उत्पन्न करने वाली अशुभ मनोवृत्तियों का प्रतिपादन है, जबकि लेश्या-सिद्धान्त का सम्बन्ध तनाव उत्पन्न करने वाले और तनावमुक्ति की दिशा में ले जाने वाले भावों-दोनों से हैं। यहाँ हम कषायों के स्वरूप एवं तनाव से उनके सह-सम्बन्ध के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
कषाय मात्र किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति आसक्ति नहीं है। कषाय वे प्रवृत्तियाँ हैं, जो 'पर' के प्रति ममत्वबुद्धि से व्यक्ति के चित्त में उत्पन्न अशुभ भावों के रूप में होती हैं, इसलिए इन्हें अशुभ चित्तवृत्ति कहा जाता है। कषायवृत्ति तनाव का हेतु है, अधोगति में ले जाने वाली है, अतएव शान्ति-मार्ग के पथिक साधक व्यक्ति के लिए कषाय का त्याग आवश्यक है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है- अनिगृहीत क्रोध, मान, माया तथा लोभ -ये चार संसार बढ़ाने वाली कषायें पुनर्जन्म-रूपी वृक्ष का सिंचन करती हैं। दुःख (तनाव) का कारण है, अतः शान्ति या तनावमुक्ति के लिए व्यक्ति उन्हें त्याग दे। 232 'कषाय' जैनदर्शन का पारिभाषिक शब्द है। बौद्ध और हिन्दू-परम्परा में भी कषाय शब्द का प्रयोग अशुभ चित्तवृत्तियों के अर्थ में हुआ है।33 कषाय शब्द की व्युत्पत्ति 'कष + आय', अर्थात् 'कण' धातु में 'आय' प्रत्यय से हुई है। “कष' का अर्थ 'कसना' अर्थात् बांधना और 'आय' का अर्थ है 'लाभ' (Income) या प्राप्ति। जैनदर्शन के अनुसार, कषाय शब्द का अर्थ है -वे चित्तवृत्तियां, जिनसे कर्म का बंध होता है। दूसरे शब्दों में, जो वृत्तियां कर्मबंध में या संसार परिभ्रमण में वृद्धि करें, वे कषाय हैं।
... मनोवैज्ञानिकों की भाषा में कहें, तो कषाय वे मनोभाव हैं, जो व्यक्ति की तनावग्रस्त अवस्था के सूचक हैं। हर व्यक्ति तनावमुक्ति चाहता है, किन्तु उसके मन में रहे हुए अशुभ मनोभाव (कषाय) उसे तनावमुक्त करने के विपरीत, उसे तनावग्रस्त बना देते हैं।
जैनदर्शन में जहां कषाय को कर्म-बंध का हेतु एवं दुःख का कारण बताया है, वहीं मनोवैज्ञानिकों ने उसे तनावग्रस्तता का कारण बताया है।
तनाव का सम्बन्ध हमारे मन से है, किन्तु मन में ऐसा क्या है, जो व्यक्ति के जीवन को तनावयुक्त बना देता है? मन का स्वभाव है
232 दशवैकालिकसूत्र - 8/40 . 233 बौद्ध परम्परा मे -धम्मपद - 223, हिन्दू परम्परा में - छान्दोग्योपनिषद् - 7/26/2
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