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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
होती है, जिसमें वासनाओं और कषायों का पूर्णतः अभाव होता है, उसमें विवेक जाग्रत हो जाता है, जो व्यक्ति को तनावमुक्ति के लिए अग्रसर करता है। तनावमुक्त व्यक्ति सदैव यही प्रयत्न करता है कि उसे कभी तनावग्रस्तता का अनुभव नहीं हो, इसलिए वह तनावमुक्त अवस्था के हेतु प्रयत्न करता रहता है। वह यही चाहता है कि वह पूर्णतः तनावमुक्त हो जाए और कभी तनावग्रस्त न रहे।
____ अन्तरात्मा भी वही होती है, जो परमात्मस्वरूप की उपलब्धि में सतत रूप से साधनारत रहती है। विवेकयुक्त आत्मा राग-द्वेष से ग्रस्त . नहीं होती। जहाँ राग-द्वेष नहीं, वहाँ सुख-दुःख या संयोग-वियोग में हर्ष-विषाद भी नहीं होती है और ऐसा व्यक्ति तनावमुक्त होता है। ___ परमात्मा का स्वरूप व तनावमुक्ति -
त्रिविध आत्मा में अंतिम आत्मा को परमात्मा कहा गया है। आत्मा की यही तीसरी अवस्था पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है। प्रारम्भ में ही कहा गया है कि पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था ही मोक्ष की अवस्था है। जैनदर्शन के अनुसार, परमात्मा इच्छा-आकांक्षा, राग-द्वेष से रहित होते हैं। अन्तरात्मा में व्यक्ति साधक होता है और परमात्म-स्वरूप । की उपलब्धि के लिए साधना करता है। यही परमात्म-स्वरूप की उपलब्धि पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है, क्योंकि यह वीतराग-दशा
__ जैनदर्शन में त्रिविध आत्मा की जो अवधारणा दी गई है, वह मनोवैज्ञानिक दृष्टि से तनाव, तनावमुक्ति के प्रयास एवं तनावमुक्ति की अवस्थाएँ हैं। जो व्यक्ति तनावयुक्त है, वह बहिरात्मा है, जो तनाव के कारणों को समझकर उसके निराकरण का प्रयास करता है, वह अन्तरात्मा की अवस्था में आ जाता है। इसी क्रम में, जब अन्तरात्मा तनाव के कारणों का निराकरण कर उन्हें पनः उत्पन्न नहीं होने देता है, तो वही परमात्मा बनने का प्रयास होता है और यही प्रयास सफल होने पर पूर्णतः तनावमुक्त परमात्म-अवस्था प्राप्त होती है। त्रिविध चेतना और तनाव .."
जैनदर्शन में आत्मा की सक्रिय स्थिति को चेतना कहा गया है। जैन आचार्यों ने इसे भी तीन भागों में बांटा है-213
213 अ) प्रवचनसार, गाथा- 123-125
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