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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 105. अध्याय-4 जैनदर्शन की विविध अवधारणाएँ और तनाव से उनका सम्बन्ध (अ) त्रिविध आत्मा की अवधारणा और तनाव - जैनदर्शन अध्यात्मवादी दर्शन है। उसमें आत्मा की विशुद्धि को प्राथमिकता दी गई है। अध्यात्म का अर्थ आत्मा की सर्वोपरिता है। आत्मा का निर्मलतम या विशुद्धतम अवस्था में होना ही अध्यात्म का लक्षण है और यह अवस्था ही पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है। जैनदर्शन के अनुसार, आत्मिक विकास तनावमुक्ति की एक सहज प्रक्रिया है। जैसे-जैसे आत्मा के आध्यात्मिक-गुणों का विकास होगा, वैसे-वैसे व्यक्ति तनाव से मुक्त होता जाएगा। ... हम यह भी कह सकते हैं कि जैसे-जैसे व्यक्ति तनावमुक्त होगा, वह आत्मा की विशुद्धतम अवस्था की ओर अग्रसर होता जाएगा, क्योंकि जैनदर्शन में आत्मविशुद्धि का अर्थ है -आत्मा का राग-द्वेष और तजन्य कषायों से मुक्त होना क्रोधादि कषायों से मुक्त होना ही तनावमुक्ति है। जैनदर्शन में आत्मा के आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से तीन अवस्थाएँ कही गई हैं 200 - 1. बहिरात्मा, 2. अन्तरात्मा और 3. परमात्मा। इन तीनों अवस्थाओं के लक्षणों के द्वारा यह जाना जा सकता है कि व्यक्ति तनाव की किस अवस्था में है। इन तीनों अवस्थाओं को 200 अ) मोक्खपाहुड, 4 . ब).योगावतार, द्वात्रिंशिका, -17-18 स) अध्यात्ममत परीक्षा, गाथा, 125 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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