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________________ 100 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 4. लोकोत्तर-चित्त - यह तनावमुक्ति की अवस्था है। निर्वाण अर्थात् तृष्णा का शांत हो जाना, यह पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है। इस अवस्था में तनाव के मूल कारणों राग-द्वेष, वासना, मोह आदि पूर्ण रूप से क्षीण हो जाते हैं। राग-द्वेष तनाव की उत्पत्ति के बीज हैं और जब वह बीज ही समाप्त हो जाएगा, तो तनावरूपी पेड़ कभी नहीं पनपेगा। इस अवस्था में व्यक्ति का चित्त पूर्णतः तनावमुक्त हो जाता है। योगदर्शन में चित्त की पाँच अवस्थाएँ – योगदर्शन में चित्त की पाँच अवस्थाएँ कही गई हैं -1. क्षिप्त, 2. मूढ़, 3. विक्षिप्त, 4. एकाग्र और 5. निरूद्ध 197 1. क्षिप्त चित्त - यह अवस्था भी विक्षिप्त मन व कामावचर चित्त के समान ही है। चित्त एक विषय से दूसरे विषय की ओर दौडता ही रहता है, विषयों में भटकता रहता है। ऐसे में तनावमुक्ति कहाँ ? व्यक्ति पूर्णतः तनावग्रस्त बना रहता है। यह विषयासक्ति की अवस्था है। . 2. मूढ़-चित्त - इस अवस्था में प्रमाद अधिक होता है। आलस्य के कारण व्यक्ति कोई कार्य नहीं कर पाता और जो करता है, उसमें भी विफल हो जाता है। यह अवस्था भी तनावमुक्त अवस्था नहीं है, क्योंकि इसमें वासनाएँ शांत नहीं होती। निद्रावस्था में चित्त की वृत्तियों का कुछ काल के लिए तिरोभाव हो जाता है, किन्तु वे तनावमुक्त नहीं होती हैं। 3. विक्षिप्त-चित्त - बौद्धदर्शन का विक्षिप्त-चित्त जैनदर्शन के विक्षिप्त-चित्त से थोड़ा भिन्न है। इस चित्त में व्यक्ति एक विषय की ओर दौड़ता है, फिर दूसरा मिलते ही उसके पीछे भागने लगता है, तो पहला वाला छूट जाता है। वस्तुतः, यह भाग-दौड़ तनाव को उत्पन्न करती है। व्यक्ति में संतुष्टि नहीं होती है, एक के बाद एक विषय की चाह होती ही रहती है। 4. एकाग्र-चित्त - यह चित्त की वह अवस्था है, जिसमें चित्त एक विषय पर एकाग्र हो जाता है। वस्तुतः, चित्त की एकाग्रता से ही तनावमुक्ति होती है, किन्तु इस अवस्था में चित्त एकाग्र होते हुए भी तनावग्रस्त तो रहता ही है, क्योंकि उसकी एकाग्रता किसी एक विषय पर केन्द्रित हो जाती है और एक विषय की आसक्ति भी तनाव का ही कारण है। 197 भारतीय दर्शन (दत्ता), पृ. 190 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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