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________________ अध्याय १ : मोक्षमार्ग ७१ दूसरा - भरत क्षेत्र में । पहला - भरत क्षेत्र में तो बहुत से जनपद (देश) हैं । आप किस देश में रहते हैं ? दूसरा-मगध देश में । पहला-मगध देश के किस नगर में ? दूसरा-राजगृह में । पहला-राजगृह के किस पाड़े (गली) में ? दूसरा- नालंदा पाड़ा में । पहला-नालंदा पाड़ा के किस मकान में आपका आवास है ? दूसरा -अमुक मकान में । यह सभी प्रश्न और उत्तर नैगम नय के अन्तर्गत हैं । इनमें पूर्व-पूर्व के वाक्य सामान्य धर्म को और उत्तर-उत्तरवर्ती वाक्य विशेष धर्म को ग्रहण करते हैं । इस प्रकार के सभी (व्यवहारों में नैगम नय की प्रधानता है) (२) संग्रहनय - यह समूह की अपेक्षा से विचार करता है । जैसे - एक 'बर्तन शब्द से लोटा, थाली, गिलास आदि सभी का कथन कर देना . (३) व्यवहार नय - यह संग्रह नय के कथन में भेद प्रभेद करता है । जैसे-संग्रह नय के अनुसार 'बर्तन' शब्द से लोटा, गिलास आदि सभी ग्रहण कर लिये जाते हैं; किन्तु व्यवहार नय 'लोटा' को 'लोटा' कहता है और 'गिलास' को 'गिलास' तथा 'थाली' को 'थाली' आदि । लोक व्यवहार को सुचारु रूप से चलाने के लिए व्यवहारनय अधिक उपयोगी और अनुकूल है । . (४) ऋजुसूत्र नय - केवल वर्तमान की पर्याय को ही ग्रहण करता है । भूत और भविष्य की पर्यायों को गौण रखता है । (५) शब्द नय - व्याकरण सम्बन्धी लिंग, वचन, काल आदि के दोषों को दूर करके वस्तु का कथन करता है । स्वोपज्ञभाष्य में के शब्द नय ३ भेद बताये गये हैं - (१) साम्प्रत, (२) समभिरूढ़ और (३) एवंभूत । किन्तु साम्प्रत शब्द अधिक प्रचलित नहीं हैं, सामान्यतः 'शब्द' ही प्रचलित हैं । (६) समभिरूढ़ नय - जो शब्द जिस अर्थ में रूढ़ हो उसको उसी रूप में यह नय ग्रहण करता है। जैसे 'गो' शब्द के गमन आदि अनेक अर्थ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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