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________________ ७० तत्त्वार्थ सूत्र तथा भूत भविष्य का वर्तमान में सकंल्प करता है । उदाहरणार्थ - चैत्र शुक्ला १३ के दिन कहना - आज महावीर भगवान का जन्म दिन है । यद्यपि भगवान ने आज से लगभग २६०० वर्ष पहले जन्म लिया था । किन्तु चैत्र सुदी १३ को महावीर जयन्ती के दिन उक्त वचन कहा जाता है । यह भूतग्राही नैगम नय का कथन है । नैगमनय के अनुसार सत्य है । इसी प्रकार कोई व्यक्ति भोजन बनाने की तैयारी करता है तब वह किसी के पूछने पर कहता है - मैं रोटी या भात बना रहा हूँ । यद्यपि भोजन अभी बन नहीं रहा हैं, कुछ समय बाद बनेगा; किन्तु संकल्प हो जाने से यह कहना भी सत्य हैं । यह भविष्यग्राही नैगम नय है । नैगम नय के दो भेद हैं हैं ? (क) समग्रग्राही नैगम नय उदाहरणार्थ- सोने, पीतल, मिट्टी का एक 'घड़ा' शब्द से ग्रहण करना । (ख) देशग्राही नैगम नय यह देश अर्थात् अंश को ग्रहण करता है । जैसे यह पीतल का घड़ा है, मिट्टी का घड़ा है, इत्यादि । समग्ररूप से नैगम नय सामान्य ( द्रव्य) और विशेष (पर्याय) दोनों को ही ग्रहण करता है, अर्थात् पूरे द्रव्य को (पर्याय सहित) ग्रहण करता है; किन्तु कथन शैली में द्रव्य और पर्याय का कंथन एक साथ नहीं हो सकता अतः जब यह द्रव्य को मुख्य करके और पर्याय को गौण रखकर कथन करता है तो समग्रग्राही नैगम नय होता है और जब पर्याय की मुख्यता से (द्रव्य को गौण रखकर ) कथन करता है तो देशग्राही नैगम नय कहलाता है । नैगम नय को एक उदाहरण द्वारा यों समझ सकते हैं। परिचय जानने के लिए एक ने दूसरे से पूछा- आप कहाँ रहते हैं ? दूसरा व्यक्ति धार्मिक स्वभाव का था, उसने कहा - लोक में । पहला व्यक्ति भी तत्त्व का जानकार था । उसने कहा - - लोक तो बहुत विस्तृत हैं । उसमें आप कहाँ रहते हैं ? दूसरा व्यक्ति मध्यलोक में । पहला मध्यलोक में कहाँ ? - 1 Jain Education International (१) समग्रग्राही और (२) देशग्राही । यह सामान्य को ग्रहण करता है । भेद न करके सभी प्रकार के घड़ों को - - दूसरा - जम्बूद्वीप में । पहला - जम्बूद्वीप में कई क्षेत्र हैं । आप किस क्षेत्र में निवास करते For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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